महात्मा गौतम बुद्ध के श्रावस्ती में प्रवचन चल रहे थे।
प्रवचन में नित्य ही बड़ी संख्या में लोग आते और विविध महत्त्वपूर्ण व गंभीर विषयों
पर बुद्ध से ज्ञान ग्रहण करते।
बुद्ध का शिष्य वर्ग भी काफी विशाल था, जो प्रवचन स्थल की व्यवस्था सँभालता और बुद्ध की
सेवा में सदैव तत्पर रहता।
एक बार रात के समय महात्मा बुद्ध प्रवचन दे रहे थे।
सदैव की भाँति काफी लोग उनके प्रवचन सुन रहे थे।
एक व्यक्ति जो बुद्ध के ठीक सामने बैठा था, बार-बार नींद के झोंके ले रहा था।
बुद्ध थोड़ी देर तक तो प्रवचन देते रहे, फिर उससे बोले, “वत्स, सो रहे हो?"
उस व्यक्ति ने हड़बड़ाकर कहा, “नहीं महात्मा।"
बुद्ध ने पुनः प्रवचन प्रारंभ किए। वह व्यक्ति फिर ऊँघने लगा।
महात्मा ने फिर वही प्रश्न दोहराया और उसने फिर अचकचाकर “नहीं महात्मा" कहा।
ऐसा लगभग आठ-दस बार हो गया। कुछ देर बाद बुद्ध ने उससे पूछा, "वत्स, जीवित हो?"
हर बार की तरह इस बार भी उसने कहा, "नहीं महात्मा ।"
यह सुनकर उपस्थित श्रोताओं में हँसी की लहर दौड़ गई और वह व्यक्ति पूर्णत: चैतन्य हो गया।
तब बुद्ध गंभीर होकर बोले, "वत्स !
निद्रा में तुम्हारे मुख से सही उत्तर मिल ही गया। जो निद्रा में है, वह मृतक समान ही है।"
महात्मा बुद्ध का संकेत था कि गुरु से ज्ञान ग्रहण करते वक्त सजगता अत्यंत आवश्यक है।
गाफिल रहने की स्थिति में ज्ञान की प्राप्ति पूर्ण नहीं होती और अधकचरा ज्ञान सदैव खतरनाक साबित होता है।