मानव का धर्म है 'विवेकी' बनना

गौ तम बुद्ध ने बहुत से अज्ञानी लोगों को सम्यक् दृष्टि प्रदान की थी।

तब की बात है । कोसांबी में एक ब्रह्मचारी रहता था ।

उसे अभिमान था कि उस जैसा कोई विद्वान् नहीं है, इसलिए अपने साथ सदैव जलती मशाल रखता था।

गौतम बुद्ध ने देखा, तो उससे पूछा, "अरे! यह मशाल लिये क्यों घूमते हो?"

ब्रह्मचारी ने उत्तर दिया, "सभी प्राणी अंधकार और अज्ञान में पथभ्रष्ट हैं,

उन्हें रास्ता दिखाने के लिए मशाल लिये घूमता हूँ ।"

तथागत ने पूछा, “क्या तुम्हें चार प्रकार की विद्याओं - शब्दविद्या, नक्षत्रविद्या, राजविद्या व युद्धविद्या का पूर्ण ज्ञान है ? "

ब्रह्मचारी ने अपनी अनभिज्ञता प्रकट करते हुए मशाल फेंककर तथागत के चरणों में मस्तक झुका दिया ।

उसका ज्ञान - गर्व चूर हो गया ।

जो दूसरों को मूर्ख समझकर उनसे घृणा करता है, वह उस व्यक्ति की तरह है,

जो स्वयं अंधा होकर दूसरों को मशाल दिखाता घूमता है।

अहंकारी कभी विवेकवान नहीं हो सकता और बिना विवेक के सत्-असत् का ज्ञान नहीं हो सकता ।

अंततः ऐसे विवेकांध व्यक्ति को जीवन में कोई उपलब्धि प्राप्त नहीं होती, हताशा ही हाथ लगती है ।