बुद्ध ने मिठाई खाई

द्ध को एक शिष्य ने खाने के लिए मिठाई दी। बुद्ध ने पूछा कि इतनी

अच्छी मिठाई कहाँ से प्राप्त की?

पहले तो उसने झूठ बोलकर किसी मित्र का नाम बता दिया।

किंतु बुद्ध को विश्वास नहीं हुआ। बुद्ध ने

फिर पूछा कि सच-सच बताओ कि तुमने यह मिठाई कहाँ से प्राप्त की है?

बुद्ध की शक्ति के सामने वह झूठ न बोल सका।

आखिर उसे सच बतलाना ही पड़ा, “मैंने अमुक दुकान से यह मिठाई चुराई थी।''

यह सुनकर बुद्ध को दु:ख हुआ। उन्होंने तुरंत ही मुख में उँगली डालकर उलटी के द्वारा सारी मिठाई निकाल दी।

यह सब देखकर शिष्य रोने लगा और उसने बार-बार बुद्ध से क्षमा माँगी।

उसने विश्वास दिलाया कि अब मैं कभी भी चोरी न करूँगा।

बुद्ध ने समझाया कि चोरी करना पाप है और वह एक अपराध है।

चोरी करनेवाले को नरक मिलता है एवं चोरी करना अधर्म है।

धर्म के दस अंग हैं।

तुम उनको अच्छी तरह से समझ लो - (1) सदा सत्य बोलो। (2) हिंसा मत करो। (3) चोरी मत करो। (4) अधिक पदार्थों को जमा नहीं करना चाहिए।

(5) इंद्रियों को सदा वश में रखो। (6) मन को सदा पवित्र रखो। (7) सबको क्षमा करना चाहिए।

(8) यथा शक्ति सबकी मदद करना। और (10) क्रोध नहीं करना चाहिए।

जो मनुष्य धर्म का पालन करता है, वह सदा सुखी रहता है और ईश्वर उस पर सदा प्रसन्न रहते हैं।