-संग के विचार तन और मन को बीमार करते हैं, इसीलिए विवेकियों
का संग करें, ताकि मन को शांति मिले।
चिंता करने से अच्छा है कि 'उपाय' करें ।
सुखी होने का मंत्र है ‘ज्ञान', पैसा नहीं।
तुम्हें देवता बनना है, पर पहले तुम मनुष्य बनना सीखो।
मन में दया, प्रेम और करुणा भर लो, परमात्मा को अपने आप ही समझ जाओगे।
सुख और दुःख भगवान् के द्वारा नहीं भेजे जाते, बल्कि हम स्वयं ही उनके लिए जिम्मेदार हैं।
इस जगत् में जिसे मुक्त होना है, उसे कोई बाँधने वाला नहीं है और जिसे इस जगत् में बँधना है, उसे भगवान् भी नहीं छुड़ा सकते।
यदि किसी के साथ मतभेद होता है तो यह निर्बलता की निशानी है।
शादी का दिन, जन्म का दिन, मृत्यु का दिन घर बैठे आता है; तो क्या सिर्फ लक्ष्मी पर ही विश्वास नहीं आता?
वह भी घर बैठे आएगी। यदि संसार में सुख चाहिए तो जबरदस्ती और अनधिकार रूप से कुछ न माँगें ।
सबको प्रसन्न करने की कोशिश करो, तुम्हारा मन अपने आप शांत हो जाएगा।
जो धर्म मनुष्य को सरल बना देता है, वह सबसे श्रेष्ठ धर्म है। क्लेश रहित घर एक मंदिर है।
नहीं है।
अज्ञानी मनुष्य स्वयं को समझदार समझता है, पर यह वास्तविकता
लोग भले ही उलटा चलें, पर आप अपना धर्म न छोड़ें।
वैराग्य का अर्थ है निर्णय किया हुआ सत्य; उस पर चलकर जीवन को सफल बनाएँ।
मन की खुराक है 'विचार', उसे अच्छे विचारों का संग दो, तब मन आपके अनुकूल होगा।
इस संसार को गले से मत लगाना, वरना बंधन में पड़ जाओगे।
अहिंसा को धारण करना धर्म है।
अहिंसा को तप कहा गया है। सभी बुराइयों की जड़ अज्ञान है।
ज्ञान देने वाला 'गुरु' है। कभी सुख, कभी दुःख आते-जाते हैं, आप मन को स्थिर रखें।
आप संसार में रहें, किंतु मन में संसार को न बसाएँ।
किसी को भी कष्ट न देना स्वधर्म है।
सांसारिक हित-अहित का जब भान चला जाए, तब समझ लेना कि ‘मोह' का विष आ गया है।
जो व्यक्ति किसी को दुःख नहीं देता, वह महात्मा है।
मन, वचन और कर्म से शुद्ध होने पर 'लक्ष्मी' स्वयं आती है।
कलियुग का अर्थ है, कुसंगियों का साम्राज्य।
सभी प्रकार से सुखी होना है तो सहनशील बनो ।