गवान् बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात् 477 ई.पू. राजगृह में हुई भगवान
एक सभा में भगवान् बुद्ध के प्रवचनों को लिपिबद्ध किया गया।
सौ वर्षों बाद 377 ई.पू. में वैशाली में इसी विषय पर पुनः एक सभा हुई। एक
सौ छत्तीस वर्षों बाद, अर्थात् 241 ई.पू. में पाटलिपुत्र में आयोजित तीसरी सभा में त्रिपिटकों में बौद्ध धर्म के दर्शन,
सिद्धांतों और नियमों को प्रामाणिक रूप दिया गया।
भगवान् बुद्ध ने क्लेशों के नाश हेतु 84,000 धर्म-स्कंधों का उपदेश दिया था
। उनके अनुसार आचरण करने से समस्त क्लेशों से मुक्ति संभव हो जाती है।
इन धर्मों को संक्षेप में बारह भागों में बाँटा गया है।
ये द्वादशांग धर्म प्रवचन कहलाते हैं।
उन बारह भागों को यदि और संक्षिप्त किया जाए तो वे तीन पिटकों में समाविष्ट हो जाते हैं ।
तीन त्रिपिटक हैं—विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक।
त्रिपिटक पालि भाषा में है।
विनय पिटक—विनय पिटक में भिक्षुओं के लिए भगवान् बुद्ध द्वारा निर्देशित आचार संकलित हैं।
सुत्तपिटक -सुत्तपिटक में पाँच निकायों में बौद्ध धर्म के सिद्धांत और भगवान् बुद्ध की संगोष्ठियाँ संकलित हैं।
अभिधम्म पिटक—अभिधम्म पिटक में दार्शनिक चर्चाएँ और धर्म विश्वास वचन संकलित हैं।
इन त्रिपिटकों में संकलित बुद्ध वचन 'त्रिपिटक बुद्ध वचन' कहलाते
हैं। बौद्ध धर्म को समझने के लिए त्रिपिटकों का अध्ययन आवश्यक है।
अपनी कृति ‘बौद्धसिद्धांतसार' में परम पावन दलाई लामा लिखते
हैं-
‘भगवान् बुद्ध के समस्त उपदेशों का सार तीन शिक्षाएँ हैं— अधिशील शिक्षा, अधिसमाधि शिक्षा एवं अधिप्रज्ञ शिक्षा ।'
उनकी तीन शिक्षाओं में अधिशील शिक्षा सर्वप्रथम मानी गई है।
आचार्य नागार्जुन के अनुसार, जैसे पृथ्वी संपूर्ण लोकों का आधार होती है,
उसी तरह यह भी समस्त गुणों का आधार होती है।
है।
त्रिपिटकों के सारे तत्त्वों का इन तीनों शिक्षाओं में समावेश हो जाता