बौद्ध धर्म में आत्मा

बौ`द्ध धर्म में कर्म एवं पुनर्जन्म के साथ-साथ आत्मा के विषय में भी

गहन चिंतन मिलता है।

स्वयं भगवान् बुद्ध ने अपने उपदेशों में

आत्मा के संबंध में विचार व्यक्त किए और शिष्यों को बताया कि किन- किन तत्त्वों को आत्मा नहीं मानना चाहिए।

भगवान् बुद्ध के अनुसार मनुष्य रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान अर्थात् चेतना का समुच्चय होता है।

जब ये स्कंध कर्म के परोक्ष प्रभाववश संस्कार उत्पन्न करते हैं तो जीवन अस्तित्व धारण करता है।

मृत्यु के बाद रूप, वेदना तथा संज्ञा नष्ट हो जाते हैं, परंतु विज्ञान एवं संस्कार शेष रहते हैं।

इन्हीं के कारण पुनर्जन्म संभव हो पाता है।

भगवान् बुद्ध के अनुसार, “रूप आत्मा नहीं है”, “वेदना आत्मा नहीं है”, “संज्ञा आत्मा नहीं है”,

“संस्कार आत्मा नहीं है”, “विज्ञान आत्मा नहीं है",

इनको आत्मा मानना उचित नहीं, क्योंकि ये बाधाग्रस्त हैं,

'अनित्य' दुःख हैं। ये कैसे ‘अता' अर्थात् अपने हो सकते हैं। ‘अनता' है।