न्य धर्मों की भाँति बौद्ध धर्म में भी कुछ विशेष दिवस मनाए जाते अन्य
हैं। इन्हें दो वर्गों में बाँटा जा सकता है। एक तो वे जिन्हें हीनयान (थेरावा) और महायान के अनुयायी मनाते हैं।
इनमें अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार तिथियाँ होती हैं।
दूसरे वे जिन्हें जापान के बौद्धधर्मावलंबी मानते हैं और विदेशों में उनके अनुयायी हैं।
विश्व के सभी बौद्धों द्वारा ये तीन दिवस मनाए जाते हैं—(1) बुद्ध का प्राकट्य दिवस, (2) बोधि दिवस एवं (3) निर्वाण दिवस।
भारत में मूल बौद्ध धर्म के अनुयायी बुद्ध पूर्णिमा को उनका जन्म- दिवस, बुद्धत्व-प्राप्ति दिवस एवं निर्वाण दिवस मनाते हैं।
बुद्ध का प्राकट्य अथवा जन्म दिवस-महायान परंपरा के अनुसार लुंबिनी के उद्यान में ईसा से 550 वर्ष पूर्व शाक्य मुनि बुद्ध का जन्म हुआ था।
उनके अनुसार, यह तिथि 8 अप्रैल को पड़ती है। इसे पुष्य पर्व भी कहा जाता है।
अमरीका में बौद्ध इस तिथि को बौद्ध विहार में स्थापित शाक्य मुनि की प्रतिमा को मीठी चाय से स्नान कराते हैं ।
विहार को फूलों से सजाया जाता है।
कहा जाता है कि जिस दिन बुद्ध का जन्म हुआ था, उस दिन स्वर्ग से मीठी बरसात हुई थी।
इसी की स्मृति में प्रतिमा को मीठी चाय से स्नान कराया जाता है ।
इसी तरह बच्चों की परेड आदि के भी आयोजन किए जाते हैं। हवाई में इसे राजकीय त्योहार के रूप में मनाया जाता है, तथापि उस दिन
सार्वजनिक अवकाश नहीं होता ।
थेरावाद अथवा हीनयान की परंपरा के अनुसार ईसा से 628 वर्ष पूर्व वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध का जन्म हुआ था। थेरावादी बौद्ध उसे जन्म दिवस ही नहीं, बोधि दिवस एवं निर्वाण दिवस के रूप में भी मनाते हैं।
बोधि दिवस—महायान परंपरा के बौद्ध आठ दिसंबर को बोधि दिवस मनाते हैं। उनके अनुसार ईसा से 531 वर्ष पूर्व बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व प्राप्त हुआ था।
निर्वाण दिवस—महायान परंपरा के अनुसार, ईसा से 486 वर्ष पूर्व 15 फरवरी को कुशीनगर में तथागत ने अस्सी वर्ष की अवस्था में महानिर्वाण प्राप्त किया था।
जापान में लोग अपने परिवार की स्मृति में उसी दिन प्रार्थनाएँ करते हैं। ‘एई ताई क्यों' नामक इस प्रार्थना में मृतक की स्थायी स्मृति के लिए सूत्रपाठ किया जाता है ।
अमरीका में बौद्ध ये तीन दिवस भी मनाते हैं-
एक जनवरी–शु शो ये–नववर्ष दिवस प्रार्थना ।
एक सितंबर—स्थापना दिवस ।
31 दिसंबर—जो या ये-नववर्ष की पूर्व सांध्य-प्रार्थना।
बौद्ध धर्म के संस्कार
बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार अनेक देशों में हुआ। बौद्ध धर्म ग्रहण करनेवाले गृहस्थों ने जन्म से लेकर मृत्यु तक के संस्कारों को अपनी देशीय एवं स्थानीय परंपराओं-परिवेशों से लेकर उन्हें बुद्ध-उपदेशों के अनुरूप ढाल लिया। अन्य धर्मावलंबियों की भाँति गृहस्थ बौद्ध भी जन्म से लेकर मृत्यु तक अनेक संस्कारों का पालन करते हैं।