राजकुमार ने जानी कर्म की महत्ता

एक राजा ने अपने पुरुषार्थ से राज्य को समृद्ध बना दिया था। राज्य में

प्रजा बड़ी सुखी थी, क्योंकि वह प्रत्येक वर्ग के हितों को ध्यान में रखकर काम करता था।

जब राजा वृद्ध हुआ तो उसे योग्य उत्तराधिकारी की चिंता सताने लगी, क्योंकि उसे लगता कि योग्य उत्तराधिकारी के बिना सुव्यवस्था,

अव्यवस्था में बदल जाएगी और प्रजा की परेशानी बढ़ जाएगी।

हालाँकि राजा का एक बेटा था, किंतु वह अत्यधिक आलसी और कर्महीन था।

वह स्वयं को मालिक समझता और शेष सभी को अपना गुलाम ।

यह अहंकार उसके आचरण में सदैव झलकता था।

राजा उसे सुधारने के उद्देश्य से बुद्ध के आश्रम में छोड़ आया।

बुद्ध ने अगले ही दिन राजकुमार को आदेश दिया, ‘“वत्स! यहाँ से पाँच कोस पर एक जंगल है।

तुम वहाँ जाकर फूलों के कुछ पौधे ले आओ और उन्हें आश्रम के अहाते में लगा दो।"

यह सुनते ही राजकुमार को बड़ा क्रोध आया, क्योंकि उसने तो आदेश देना ही सीखा था।

चूँकि उसके पिता ने बुद्ध की बात मानने को कहां था, इसलिए वह मन मारकर जंगल गया और फूलों के पौधे लाकर आश्रम में लगा दिए।

राजकुमार ने उन्हें सींचा और जानवरों से बचाने के लिए उनकी रात-दिन रखवाली की।

कुछ महीनों में सारा आश्रम भाँति-भाँति के सुंदर फूलों से खिल उठा।

राजकुमार अपनी मेहनत का ऐसा फल देखकर बहुत प्रसन्न हुआ।

बुद्ध ने उसे शाबाशी देते हुए समझाया, "वत्स! याद रखो, जो सोता है, उसका भाग्य भी सो जाता है और जो चलता है,

उसका भाग्य निरंतर उसके साथ चलता है।" अब राजकुमार कर्मठ बन चुका था।

राजा को अपना योग्य उत्तराधिकारी मिल गया था। कर्म, सफलता की कुंजी है।

अतः . सदैव कर्मरत रहना चाहिए।