बुद्ध ने बताया शांति पाने का उपाय

महात्मा बुद्ध नदी के किनारे एकांत में अपनी कुटिया में रहते थे।

उन्होंने कुटिया के चारों ओर हरे-भरे वृक्ष लगा रखे थे,

जिन पर सुबह-शाम पक्षियों का कलरव गूँजता रहता था।

प्रकृति का यह मधुर- सान्निध्य महात्मा बुद्ध को सदैव आनंदित रखता था ।

पक्षी और पेड़-पौधे तो मानो उनका परिवार ही बन गए थे।

एक दिन महात्मा बुद्ध प्रात:कालीन उठे ही थे कि द्वार पर उन्हें एक सेठजी खड़े नजर आए।

उन्हें चिंताग्रस्त देख महात्मा बुद्ध ने उनसे समस्या जाननी चाही।

सेठजी बोले, “महाराज! मेरे पास विशाल संपदा है, भरा-पूरा परिवार है और मुझे कोई रोग भी नहीं है।

फिर भी मुझे नींद नहीं आती, रातभर करवटें ही बदलता रहता हूँ।"

महात्मा बुद्ध ने आत्मीयता से सेठजी के सिर पर हाथ फेरकर कहा, “सेठ !

तुम्हारे पास सब कुछ भले ही हों, किंतु वह नहीं है, जो नींद के लिए आवश्यक है।

” सेठ ने पूछा, "वह क्या है, महाराज?"

महात्मा बुद्ध बोले, “तुम चारों ओर चिंताओं से घिरे हो ।

धन-संपत्ति की चिंता, व्यापार- व्यवसाय की चिंता, परिवार की चिंता ।

स्मरण रखो कि चिंता-चैन में शत्रुता है।''

सेठ ने इससे बचने का उपाय पूछा तो उन्होंने कहा, “तुम प्रकृति से शिक्षा ग्रहण करो।

पेड़-पौधे, फूल, पानी और प्रकाश के रूप में उसकी अनंत संपदा चारों ओर बिखरी हुई है,

किंतु वह चिंतामुक्त है। अपनी इस दौलत को पूरी दुनिया पर दोनों हाथों से सतत लुटाती रहती है।

तुम यदि उससे प्रेरणा लेकर अपना जीवन भी उसके अनुरूप बना लोगे तो

तुम्हें न केवल नींद आएगी, बल्कि अतीव शांति महसूस होगी।"

सेठ ने महात्मा बुद्ध की बात का मर्म समझा और लोक कल्याण की राह पर चल पड़ा।

धन और ज्ञान देने से बढ़ते ही हैं।

इसलिए इनके संग्रह के साथ-साथ इनके दान की वृत्ति भी रखनी चाहिए।