सत्य की प्राप्ति में ही स्थायी सुख है

बौद्ध भिक्षु बोधीधर्म जब बौद्ध धर्म को भारत से चीन, जापान और

पूर्वी एशिया के अन्य देशों में ले गए तो बौद्ध धर्म की झेन शाखा विकसित हुई।

इसमें कथाओं के माध्यम से चेतना का विस्तार कर बद्धत्व की प्राप्ति के काबिल बनाया जाता है।

ऐसी ही एक झेन कथा है कि एक व्यक्ति घने जंगल से गुजर रहा था।

अचानक सामने एक भयानक शेर आ गया।

हड़बड़ाकर वह उलटी दिशा में भागने लगा और जल्दी ही एक सैकड़ों फीट गहरी खाई के किनारे पहुँच गया।

तभी उसे खाई में एक लंबी बेल लटकती नजर आई।

उसे उम्मीद जगी कि बेल पर लटककर नीचे उतरने की कोई राह निकल आएगी।

वह बेल पकड़कर लटकने लगा।

तब तक खाई के कगार पर पहुँच चुका शेर उसे देखकर दहाड़ने लगा।

तभी उसकी निगाह नीचे गई तो देखा कि नीचे खाई में एक अजगर मुँह फाड़े उसका इंतजार कर रहा है।

तभी उसने देखा कि न जाने कहाँ से दो चूहे आकर बेल कुतरने लगे।

एक चूहा सफेद और एक काला था।

इस संकट के बीच उसे बेल में एक लाल और रसभरा चेरी की तरह का फल दिखा।

उसने फल को मुँह में रखा और कहा कि कितना मीठा और अद्भुत फल है।

शेर भूतकाल के कर्मों का प्रतीक है, जो हमारा पीछा करते हैं।

साँप बुढ़ापे व बीमारियों का प्रतीक है।

खाई में लटकती बेल वर्तमान है।

भूत व भविष्य के खतरों के बीच हम वर्तमान में वजूद बनाए हुए हैं

और जंगली फल सांसारिक अस्थायी आनंद का प्रतीक है। दो चूहे दिन और रात कां

प्रतीक हैं, जो लगातार उम्ररूपी वर्तमान की बेल काट रहे हैं। ऐसे खतरों के बीच रहकर भी मानव

भविष्य को सुरक्षित करने के लिए सत्य की प्राप्ति में नहीं लगता और जंगली फल जैसे अस्थायी सुखों की प्राप्ति में खुद को

धन्य मानता है।