एक बार भगवान बुद्ध किसी नगर के मार्ग पर पैदल जा रहे थे। उसी
ए मार्ग पर दोण नामक ब्राह्मण सामने से आ रहा था।
अचानक बुद्ध को
उसी समय बैठकर ध्यान लगाने की इच्छा हुई।
वे सड़क के एक ओर उतरकर एक पेड़ के नीचे पद्मासन लगाकर ध्यान मुद्रा में बैठ गए।
दोण उन्हें जानता नहीं था, किंतु उनके तेजस्वी व्यक्तित्व ने उसे प्रभावित किया।
इसलिए वह बुद्ध से भेंट करने के लिए उनके पास आया।
जब उसने बुद्ध को एकाग्रचित्त देखा, तो वह एक ओर चुपचाप बैठ गया।
जब बुद्ध ने आँखें खोलीं तो दोण की ओर प्रश्नसूचक मुद्रा में देखा।
दोण ने बुद्ध को प्रणाम कर प्रश्न किया, 'आर्य! क्या आप देवता है?"
बुद्ध ने धीर-गंभीर स्वर में कहा, "ब्राह्मण ! मेँ देवता नहीं हूँ।”
ब्राह्मण ने पूछा, “क्या आप गंधर्व हैं?”
बुद्ध ने इनकार में सिर हिलाया ।
ब्राह्मण ने जिज्ञासा व्यक्त की, “फिर आप यक्ष होंगे?”
बुद्ध ने इस बार भी हाँ नहीं की।
ब्राह्मण का अगला सवाल था कि आप सामान्य आदमी तो हैं?
बुद्ध ने कहा कि नहीं।
ब्राह्मण चकरा गया।
उसने पूछा, “फिर आप क्या हैं?’” बुद्ध बोले, “मैं पहले निश्चित रूप से देवता, गंधर्व, यक्ष या मानव सबकुछ था,
क्योंकि तब मैंने अपने मोह का त्याग नहीं किया था।
अब मैं सभी प्रकार के मोह से मुक्त हूँ।
जिस प्रकार एक कमल कीचड़ में ही उत्पन्न होता है, उसी में खिलता है, किंतु उससे अलग रहता है,
उसी प्रकार मैं भी इस संसार में पैदा हुआ, इसी में बड़ा हुआ, किंतु अब इस संसार को जीतकर इससे असंपृक्त हो गया हूँ ।
अतः अब तुम मुझे तथागत अर्थात् ज्ञानी व्यक्ति के रूप में जानो।”
निहितार्थ यह है कि ज्ञान, मोह से मुक्ति का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है
और यह आत्मिक शांति का उत्तम साधन है।