दुनिया के अंत से परमेश्वर का आरंभ

युवा एक फकीर के पास पहुँचा और शिष्य बनने की इच्छा व्यक्त

एको। फकीर ने उसे अपने पास रख लिया। युवा ने कुछ दिन बाद

पूछा, "मैं सत्य की खोज में हूँ। वह कहाँ मिलेगा?" फकीर बोला, “सत्य तुम्हें वहाँ मिलेगा,

जहाँ दुनिया का अंत होता है।"

युवा फ़कीर से अनुमति लेकर दुनिया का अंत खोजने के लिए निकल गया।

वर्षों तक सफर करने के बाद वह उस गाँव तक पहुँच गया, जिसे दुनिया का अंतिम गाँव माना जाता था।

उसने गाँव के लोगों से पूछा कि दुनिया का अंत कितनी दूर है?

लोगों ने कहा, “थोड़ा आगे जाने पर वहाँ एक पत्थर लगा है, जिस पर लिखा है- यहाँ दुनिया समाप्त होती है,

किंतु तुम वहाँ मत जाओ। जिस भयावह गड्ढे पर दुनिया समाप्त होती है, वह तुम देख नहीं पाओगे, डर जाओगे।”

वह बोला, “मुझे उस सत्य को पाना है।

अतः मैं वहाँ जाऊँगा।"

जब युवा उस स्थान पर पहुँचा तो वहाँ भयावह शून्य था और गहरे गड्ढे की कोई तलहटी नजर ही नहीं आ रही थी।

वह इतना भयभीत हो गया कि मुँह से बोल ही नहीं निकले और फिर जो भागना शुरू किया तो सीधा फकीर के पास ही आकर रुका।

फकीर ने उसकी दशा देखकर उससे पूछा, “तख्ती के दूसरी ओर क्या लिखा था?"

वह बोला, "दूसरी ओर तो मैंने देखा ही नहीं, क्योंकि इस तरफ भीषण दृश्य था।

मैं डर कर भागा।

तब फकीर ने उसे समझाया कि तख्ती के दूसरी ओर लिखा था, 'यहाँ परमात्मा का आरंभ होता है।'

दुनिया खत्म होने से अभिप्राय उसके राग-रंग समान होने से है।

जहाँ हम दुनिया के आकर्षणों से दूर होते हैं, वहीं परमात्मा की उपलब्धि हो जाती है, जो परम सत्य है और जिसे तुम पाना चाहते हो।