द्ध ने कहा, "भाग्य के भरोसे बैठने वालो, पुरुषार्थ करो। जीवन में
भाग्य का महत्त्व है, लेकिन भाग्य के भरोसे बैठकर अपने अमूल्य समय को बरबाद मत करो,
क्योंकि पुरुषार्थ करने से तो भाग्य की रेखाएँ बदल जाती हैं। भाग्य क्या है?
आज किया गया कर्म ही तुम्हारा भाग्य बनता है।
कर्म के द्वारा जो बीज बोओगे, फसल भी उसी की मिलेगी।
जैसा कर्म तुम आज करोगे, वैसा ही तुम्हारा भविष्य होगा।
सौभाग्य और दुर्भाग्य तुम्हारे ही हाथ में है।
कर्म की प्रधानता को समझना होगा कि जैसा कर्म होगा, वैसा ही फल मिलेगा।
जीवन को सफल बनाने के लिए पाप और पुण्य का बड़ा महत्त्व है।
पूरी सावधानी रखो कि पाप होने न पाए, क्योंकि पाप की सजा जरूर मिलती है।
यह जीवन पिछले पापों से छुटकारा पाने के लिए और दूसरे नए पापों से बचने के लिए मिला है
और कोशिश करो हमसे पुण्य कर्म हों।
तुम अपने जीवन को धर्म के मार्ग पर चलाओ।
तुम्हारे किए हुए पुण्यों से धर्म को शक्ति मिलती है।
यह मानव का जीवन बड़े काम का है।
इसे सावधानी पूर्वक जीना चाहिए।
अगर तुम गलतियाँ करोगे तो आगे चलकर पशु-पक्षियों वाले कपड़े पहनने पड़ेंगे।
संसार के नश्वर - पदार्थों की इच्छा मत करना, क्योंकि
इच्छा का फल बहुत दुःख देता है।
अच्छे-अच्छे कर्म करो।
उन कर्मों को करके अहंकार मत करना।
अहंकार के मार्ग में अँधेरा होता है और अँधेरे में ठोकरें लगती हैं।
संसार दुःखालय है अर्थात् दुःखों से भरा हुआ है।
संसार से प्रेम मत करना, बल्कि अपने मन से पापों को बाहर निकालो और सदा सावधान रहो कि कोई पाप न होने पाए।
मनुष्य का जीवन मिला है तो इसको सावधानीपूर्वक व्यतीत करना।
अपने जीवन में आलस्य को आने मत देना, क्योंकि यह जीवन बहुत अनमोल है।
पशुओं से पूछो कि मनुष्य जीवन का क्या महत्त्व है?
पशुओं के जीवन में तो लेश-मात्र भी सुख नहीं है।
वे सोचते हैं कि हम कब मनुष्य बनेंगे?
सरदी में रजाई और गरमी में पंखा होगा।
कब हम परोपकार करके अपना जीवन सफल बनाएँगे।
जो मनुष्य हैं, वे अपनी मानवता को सँभालकर रख नहीं पा रहे हैं, बल्कि संसार के सुखों की अँधी-दौड़ में दौड़ रहे हैं।
वे नहीं जान पा रहे हैं कि हमारी मृत्यु हमारे पीछे-पीछे आ रही है।
मानव-जीवन पाया है, बहुत अच्छी बात है।
अच्छे-अच्छे कर्म करो ताकि मन पवित्र हो जाए,
क्योंकि पवित्र-मन ही आत्मा को पा सकता है।
अपने मन को शरीर में ही फँसाकर मत रखो, क्योंकि शरीर आज है, कल रहेगा या नहीं, यह किसी को भी मालूम नहीं है।
शरीर आज नहीं तो कल मिटेगा, किंतु आत्मा सदा अमर है।
शरीर की आयु कुछ वर्षों की है, परंतु आत्मा अनंत है।
वह तीनों कालों में है।
आत्मा पहले भी था, अब भी है और बाद में भी रहेगा।
वह शाश्वत है, सनातन है, सूक्ष्म से भी सूक्ष्म है।
संसार की सारी शक्तियाँ उसी से सत्ता पाती हैं।
तुम मनुष्य बने हो। विचार करो कि तुम कौन हो?
जब तक यह समझ में नहीं आएगा कि तुम कौन हो? तब तक तुम भटकते रहोगे। जब तक तुम
अपनी भूल में सुधार नहीं करोगे, तब तक तुम शांति को प्राप्त नहीं कर सकते।
शांति को पाना है तो मन को पवित्र करके आत्मा का अनुभव कर लो ।
आत्मा में ही अनंत- विश्राम है। यह शरीर कुछ समय के लिए मिला है।
वास्तव में तुम आत्मा हो।
तुम्हारा शरीर जिससे शक्ति पा रहा है, वह आत्मा ही है और वही आत्मा तुम्हारे शरीर में मौजूद है।
आत्मा को जानना, आत्मा को समझना, आत्मा को पाना, आत्मा का अनुभव करना और
आत्मा का साक्षात्कार करना यह सब मनुष्य शरीर के द्वारा ही संभव है।
बस तुम सावधान हो जाओ कि मन में कोई गलत-विचार आने न पाए।
पहले मन में गलत-विचार आता है, फिर वह विचार बलवान होने पर गलत कर्म करवा देता है।
गलत कर्म का मतलब है, पाप का जन्म हो जाना।
बुद्ध ने कहा कि तुम्हारे जीवन के साथ-साथ काल भी दौड़ रहा है।
बचपन और यौवन कब निकल जाएँगे, पता भी नहीं चलेगा।
शरीर भी अनेक रोगों से घिरा रहता है।
इस शरीर की शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के रोगों से रक्षा करनी पड़ती है।
रोग और भोग दोनों शरीर को निर्बल करते रहते हैं।
रोगी और भोगी दोनों को ज्ञान अच्छा नहीं लगता।
जिनका तन और मन स्वस्थ नहीं होता, वे परमार्थ का लाभ नहीं उठा पाते।
मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी आयु रूपी संपदा का पूरा-पूरा लाभ उठाए।
अगर मनुष्य चाहे तो अपने जीवन में अच्छे-अच्छे कर्म करके श्रेष्ठ प्रगति कर सकता है।
जीवन में संयम को धारण करें। व्यर्थ की कामनाओं का त्याग करें।
ज्ञान का दीपक जलाकर कामनाओं का विसर्जन करें।
क्रोध को आग समझकर उससे सदा दूर रहना चाहिए।
सदा ज्ञान गंगा का संग करो, क्योंकि शुभ- विचार ही समस्त समस्याओं का समाधान है।
बुद्ध ने कहा कि अपने जीवन से सदा लोभ को दूर रखो,
क्योंकि तुम्हारे बूढ़े होने पर भी लोभ बूढ़ा नहीं हो पाता और लोभ सदा भूखा ही रहता है,
उसका पेट कभी भी नहीं भर पाता। अगर लोभ की वासना प्रबल
है तो वह दूसरे जन्म में भी पीछा नहीं छोड़ती।
जिस मनुष्य को लोभ अपने वश में कर लेता है।
उसका ज्ञान वह चुरा लेता है।
लोभ को शांत करना है तो संतोष की शरण में जाना होगा।
मोह के आकर्षण में मत आना, क्योंकि मोह से तुम्हारा मन बँध जाएगा और बँधा हुआ
मन तुमको बहुत दुःख देगा।
मन के दुःख का कारण है ‘अज्ञान’।
मन में अगर अज्ञान है तो दुःखों से कभी भी छुटकारा नहीं हो सकेगा।
बस एक सम्यक् ज्ञान ही है, जो तुमको परम-शांति और मोक्ष दे सकता है।
तुम अपने तन और मन में प्रेम तथा ज्ञान की ज्योति जला लो
फिर तुम्हारे जन्म-जमांतर का अज्ञान मिट जाएगा।
आज तुम मनुष्य-जन्म को धारण करके बैठे हो, इसका मतलब यह है
कि तुम शांति और मोक्ष के अति निकट हो।
अब तुम संसार में रहकर भी संसार के लगाव में फँसना मत।
संसार के अज्ञान से दूर रहना, क्योंकि वह तुमको बाँध देगा।
अपनी आत्मा का ध्यान करो, वह तुमको सर्व बँधनों से मुक्त कर देगा।