गोनू झा राजदरबार में नियुक्त हो गए थे।
सारा गाँव गोनू झा पर गर्व कर रहा था।
उन्होंने उस गाँव का नाम रोशन जो किया था। सबने गोनू झा को बधाई दी।
उन्होंने उस गांव का नाम रोशन जो किया था। सबने गोनू झा को बधाई दी। तब गोनू झा ने भी विचार किया कि गाँव वालों की इस ख़ुशी में एक भोज-समारोह का आयोजन किया जाए। धन की तो अब कोई कमी नहीं थी। पुरस्कार में ढेर सारा धन मिला था।
अगले ही दिन माँ भगवती के जागरण का आयोजन किया गया और आसपास के गांवों से भी भोज में आए। गोनू झा सबका स्वागत कर रहे थे।
बड़ी ही चहल-पहल हो रही थी।
शाम ढल गई थी। बाहर गाँवों से आने वाले और नाते-रिश्तेदार विदा करते-करते रात हो गई।
फिर भी कोई लोग अभी जाने वाले थे। उधर घुरिया और उसकी चोरमंडली गाँव से बाहर एक खंडहर में बैठी विचार-विमर्श कर रही थी।
देखा गोनू झा को। कैसे दिमाग के दम पर ही धन भी कमा लाया और राजदरबार में भी नियुक्त हो गया .घुरिया आह भरकर बोला।
गुरु भूल गया लगता है। दिमाग के ही दम पर उसे चतुर सुजान आदमी ने हमलोगों से अपना खेत खुदवा लिया था जबकि मजदूर ढूंढे नहीं मिल रहे थे। हमने मुक्त में मजदूरी की। एक साथी बोला।
उस दिन को याद करके तो मेरा खून खौल उठता है। कैसे उल्लू बनाया उस गोनू झा ने। हम उसे घर में कुदाल चलाता देखकर धोखा खा गए।
जबकि उसने एक मामूली गड्ढा खोदा था और उसी में कुदाल चलाता रहा। हम समझे कि उसने सारा घर खोद फेंका।
और गुरु मजे की बात तो यह कि उसे पता है कि उसके जाल में फंसने वाले निरे बुद्धू तो हम ही थे।
मेरा वश चले तो उसे ऐसा सबक सिखाऊं कि सारी चतुराई भूल जाए। पर क्या करूं। चोरी के आलावा तो हम कुछ नहीं कर सकते।
तो चोरी ही करते हैं .अब तो उसके घर पर माल भी खूब है।
खूब ही है। देखा नहीं, सारे गाँव की कैसी दावत की है।
गुरु, आज मौका भी है। गोनू झा कल सारी रात का जागा है और आज सारा दिन भी भागदौड़ में रहा है। बुरी तरह थक गया होगा।
बात तो पते की है। मौका अच्छा है। नींद के मारे बेहाल होंगे दोनों पति-पत्नी। घोड़े बेचकर सोएंगे। जरा-सी सावधानी से हम अपना काम कर सकते हैं। घुरिया ने कहा। तो फिर चलते हैं।
देखते है कि हमारा शिकार सोया कि नहीं।
चल तो रहे हो भाई लोगों। एक और साथी बोला - पर याद रहे कि हम बहुत चतुर आदमी से पंगा ले रहे हैं। वह आदमी एक भी क्षण गफलत नहीं करता।
अरे, उसे क्या सपना आया है कि आज रात हम उसके यहां उसके यहां चोरी करने पहुंच रहे हैं। वह तो नींद के हवाले हो चुका होगा।
आखिर सब वहां से चल पड़े। गाँव में घुसे तो सारा गाँव सोया पड़ा था पर गोनू झा के घर लालटेन अभी जल रही थी।
यह तो अभी जाग रहा लगता है। घुरिया चिंतित हुआ।
थोड़ी-बहुत देर में सो जाएगा।
तब तक क्या यूँ ही खड़े रहे। किसी ने देख लिया तो मारे जाएगें।
ऐसा करते हैं, चलकर गोनू झा की फुलवारी में छुप जाते हैं। वहां से उसके घर की आवाजें भी सुनाई पड़ती हैं . सब जने उस फुलवारी में जा छुपे। फूलों की घनी क्यारी थी।
सब वहीं छुपकर बैठ गए।
गोनू झा के घर से अभी भी बातचीत करने की आवाज आ रही थी।
अब आप भी आराम कीजिए झा जी। एक आवाज आई - हम लोग भी चलते हैं। आप दो दिन से थके हुए है।
आप भी यहीं आराम करें मास्टर जी। गोनू झा की आवाज आई - हमलोग भी चलते हैं। आप दो दिन से थके हुए हैं। आप भी यहीं आराम करें मास्टर जी। गोनू झा की आवाज आई।
अरे नहीं। जरा दूर तो जाना है। अच्छा, अब आज्ञा दें।
फिर गोनू झा और एक और व्यक्ति घर से बाहर निकले। उस व्यक्ति को घुरिया और उसके साथी पहचानते थे। वह पड़ोस के गांव का मास्टर गणेश झा था। गोनू झा का परममित्र था।
गोनू झा ने कुछ दूर तक जाकर अपने मित्र को विदा किया और घर की तरफ लौटे। अचानक वह ठिठक गए। उन्होंने फुलवारी में हलचल महसूस कर ली थी। फिर वह दरवाजे पर पहुंचे।
अजी सुनती हो। वह उच्च स्वर में बोले।
क्या है जी ? अंदर से पत्नी की आवाज आई।
अब सब चले गए हैं। पंडित जी कहकर गए हैं ग्रहदोष निवारण तभी करना जब घर में हम पति-पत्नी और भोनू ही हो। वह बोले।
कैसा ग्रहदोष ? कैसा निवारण ? पत्नी अचकचाई।
अरी भागवान! बड़ी जल्दी भूलती हो। लगता है दो दिन की थकान ने तुम्हें भुलक्क़ड बना दिया है। जल्दी करो। एक दिन से कमर सीधी नहीं की और तुम्हें मजाक सूझ रहा है।
यह मजाक नहीं है। हमारे ग्रह में कुछ दोष आ गया है। मिश्रा जी ने मुझे बताया है। अब उनकी बात तो झूठी नहीं हो सकती।
थकी-हारी पत्नी भुनभुनाकर अंदर गोबर लीपने वाली मिटटी का ढेर था। उसने बहुत से ढेले पल्लू में लिए और गोनू झा के पास दाल दिए। गोनू झा ढेले उठा-उठाकर फुलवारी में फेंकने लगे, साथ ही साथ वह अपना मन्त्र भी पढ़ रहे थे।
चाँद चांदनी चंद्र चकोर।
बढ़ा हर लेऊ माखन चोर।
अंतिम शब्द चोर को वह बहुत उच्च स्वर में बोलते थे। उधर घुरिया और उसकी चोर मण्डली मुसीबत में थी। बेचारे बिना हिले-डुले ढेलों का शिकार बन रहे थे। अपनी सिरों को घुटनों में दबाकर अपनी पीठ पर उस प्रकोप को सह रहे थे।
अब बीएस भी करो। पंडिताइन झल्लाकर बोली।
क्यों ? अभी तो पचास भी पूरे नहीं हुए। जाकर ढेले लाओ। गोबू झा निर्विकार भाव से बोले।
दया करो पंडित जी। मेरी सारी देह दुःख रही है। लगता है चक्कर आ जायेंगे। अब मुझे सोने दो।
सोने दो ? अरे तुम्हारा दिमाग खराब है। घर पर ग्रहों की वकवृष्टि है और तुम्हें सोने की सूझ रही है।
कैसी वकवृष्टि! सब तरह तो चैन है।
तुम ढेले लाती हो या नहीं।
नहीं लाती। तुम्हारी सनक के लिए मैं अपनी जान नहीं दूंगी। मुझे ही पता है कि कैसे खड़ी हूँ।
देखो, मेरा दिमाग खराब मत करो। मुझे गुस्सा आ गया तो मेरा हाथ उठ जाएगा और यह तुम्हारी सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा। गोनू झा ने गुस्सा से कहा।
हाथ उठाओगे। पंडिताइन बिफर गई - आज हाथ ही उठाओ। तभी कुछ काम होगा। मैं भी तो देखूं कि आपकी बुद्धि कितनी बिगड़ी गई है।
जरा राजदरबार में वाह-वाह क्या हुई तुम तो पगला गए।
मुझे पागल कहती हो। अभी ठहरो।
फिर तो गोनू झा और उनकी पत्नी में रात ठन गई। दोनों जोर-जोर से झगड़ने लगे। इतनी तेज आवाजें हुई कि गाँव भर में जाग हो गई। लोग दौड़-दौड़कर उनके घर की और आए।
क्या हुआ झा जी ? इतनी रात गए क्या झगड़ा है ?
झगड़ा ? पंडिताइन बोल पड़ी - इनका दिमाग फिर गया है।
भाई लोगो, गलती सरासर इसकी ही है। गोनू झा बोले।
मेरी ? हाय राम! कैसा झूठ बोल रहे हो हैं ?
सुनो भाइयो। गोनू झा ने कहा - मैं ग्रहदोष के लिए पंडित जी के बताए अनुसार एक सौ आठ ढेले चन्द्रमा की ओर उछाल रहा हूँ। ये बेचारी अंदर से ढेले ला रही थी। अभी पचास ढेले भी नहीं लाई कि थक गई। कहती है मेरे बस में नहीं।
अब कोई इससे पूछे कि यह मात्र एक सौ आठ ढेले लाने में थक गई और मेरे प्यारे भाईलोग फुलवारी मैं बैठे सारे ढेले अपनी पीठों पर झेलने को बैठा हैं और उफ़ तक नहीं कर रहे हैं।
घुरिया और उसके साथी सन्न रह गए।
और यदि मैं झूठ बोलता हूँ तो फुलवारी में बैठे उन लोगों से पूछिए जो कितनी हिम्मत से ढेलों की मार सह रहे हैं।
घुरिया आदि भागे पर गाँव वालों ने घर दबोचा और इतनी मार लगाई कि सबको नानी याद आ गई। अगले ही दिन उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया गया।
तब पंडिताइन ने जाना कि उसके पति कोई भी हरकत अकारण नहीं करते थे। उन्हें अपने पति पर गर्व था।
उन्होंने अपने व्यवहार के लिए गोनू झा से क्षमा मांगी तो गोनू झा हंसकर रह गए।