घर में बालक और बालिकाओं के बीच लिंग आधारित भेदभाव पर सवाल न उठाने
से ये भेदभाव बढ़ते हैं। इससे बालिकाओं का विकास प्रभावित होता है। यह बात आली गाँव
की किशोरी सयली अब अच्छी तरह समझती है। किशोरी बालिका क्षमता विकास
परियोजना ' के अंतर्गत जीवन कौशल शिक्षा प्रशिक्षण प्राप्त इस बालिका ने अपने घर
में लिंग आधारित भेदभाव का विरोध किया । इसके फलस्वरूप अब उसके घर में
लड़के-लड़की सभी के साथ समानता का व्यवहार होता है।
अलीराजपुर जिला मुख्यालय से 25 किमी. दूर स्थित आदिवासी बहुल इस गाँव
की रहने वाली सयली के दो भाई और दो बहने हैं। उसके माता-पिता खेती और मजदूरी
करके परिवार का पालन-पोषण करते हैं | सयली के माता-पिता बेटी के बजाय बेटों से
अधिक लाड़-प्यार करते थे और बेटियों के पोषण तथा स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देते थे ।
उनका मानना था कि बेटे ही परिवार को आगे बढ़ाएंगे। बेटी तो पराये घर चली जाएगी।
सयली ने किशोरी बालिका क्षमता विकास परियोजना ' के अंतर्गत जीवन
कौशल शिक्षा प्रशिक्षण प्राप्त किया । वह बताती है कि इस प्रशिक्षण से मुझे समझ में
आया कि लड़का और लड़की के बीच समानता का व्यवहार होना चाहिए तथा सभी को
बराबरी से विकास के अवसर मिलने चाहिए । प्रशिक्षण से मुझे लड़का-लड़की में किए
जाने वाले भेदभाव भी समझ में आए। मेरे घर में मेरे माता-पिता भाइयों के खान-पान पर
विशेष ध्यान देते थे। हम बहनों को बाहर आने-जाने की अनुमति भी नहीं होती थी।
प्रशिक्षण के बाद सयली ने अपने घर में लिंग आधारित भेदभाव का विरोध किया।
वह बताती है, पहले तो मेरे माता-पिता नाराज हुए, लेकिन मैंने उन्हें समझाया कि जिस
तरह परिवार में लड़कों का महत्व है, उसी तरह लड़कियों का भी महत्व है और वे भी
परिवार का हिस्सा है। मेरी यह बात माता-पिता को समझ में आई और आज वे हम सभी
भाई-बहनों के साथ बराबरी का व्यवहार करते हैं तथा बराबरी से सभी के पोषण और
शिक्षा का ध्यान रखते हैं।'
सयली की इस कोशिश का यह असर हुआ कि उसके माता-पिता ने पहले अपनी
अन्य बेटियों को नहीं पढ़ाने का फैसला लिया था, पर अब वे अपनी दोनों बेटियों को भी
पढ़ा रहे हैं और बराबर से उनके पोषण और स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं।
खाना, कपड़ा, किताबें और माँ-बाप का प्यार,
हर घर में हर लड़की लड़के जितनी ही हकदार ।