रणाजेश्वरी ने बदला रूढ़िवादी फैसला

जीवन कौशल शिक्षा प्रशिक्षण से राजेश्वरी ने सीखा कि उसके जीवन के

फैसलों पर दूसरों का नहीं बल्कि खुद का नियंत्रण होना चाहिए।

इसी सोच के बल पर वह

बचपन में हुई सगाई तोड़ने में कामयाब हुई । वह कहती है कि रूढ़ियों के आधार पर मेरा

जीवन नियंत्रित नहीं किया जा सकता।

राजेश्वरी धार जिले के बदनावर विकासखण्ड के ग्राम बालोदा की रहने वाली है।

वर्तमान में वह बदनावर के छात्रावास में रहकर 4 वीं कक्षा की पढ़ाई कर रही है।

राजेश्वरी के माता-पिता पढ़ना-लिखना नहीं जानते हैं और खेती तथा मजदूरी करके

परिवार का पालन-पोषण करते हैं। राजेश्वरी जब 3 माह की थी, तभी उसके माता-पिता ने

उसकी सगाई कर दी थी । बड़े होने पर उसने पूछा, 'मेरी सगाई बचपन में क्यों कर दी ?'

उसके पिता ने कहा, शायद तेरे नसीब में यही लिखा होगा। *

रजेश्वरी ने गाँव में पाँचवीं कक्षा तक पढ़ाई की | उसके बाद माता-पिता ने पढ़ाई छोड़ने के

लिए कहा किन्तु उसकी जिद के कारण उसके माता-पिता उसे आगे पढ़ाने के लिए तैयार हो

गए । आज वह छात्रावास में रहकर पढ़ाई कर रही है । पढ़ाई जारी रखने के लिए तो

राजेश्वरी ने अपने माता-पिता को राजी कर लिया था, किन्तु उसके सामने सबसे बड़ा प्रश्न

था बचपन में हुई सगाई से मुक्ति कैसे पाना ? वह चाहती थी कि वयस्क होकर अपनी

जिंदगी के फैसले मैं खुद लूँ ।

इस कठिनाई से जूझने का हौसला उसे जीवन कौशल शिक्षा प्रशिक्षण से मिला।

वहबताती है, इस प्रशिक्षण में मुझे बताया गया कि अपने जीवन के बारे में आप जो सोचते

हो उसे अपने माता-पिता से जरूर साझा करो। इससे आपको समस्याओं को हल करेे में

मदद मिलेगी। राजेश्वरी ने यही किया। उसने अपने माता-पिता से अपनी बचपन में हुई

सगाई तोड़ने को कहा। उसने कहा, मैं इस रिश्ते को नहीं मानती और जब 8 वर्ष की हो

जाऊँगी तो अपने जीवन के फैसले खुद लूँगी।'

उसने बाल विवाह की कुप्रथा का खुलकर विरोध किया। आज स्थिति यह है कि

जो माता-पिता उसे पढ़ाई छोड़ने को कह रहे थे और शादी के लिए उस पर दबाव डाल रहे

थे, वे ही अब उसका पूरा साथ दे रहे हैं। उसके माता-पिता का कहना है कि वह जब

चाहेगी, तभी उसकी शादी होगी। राजेश्वरी का कहना है कि उसमें यह आत्मविश्वास और

साहस लिखने-पढ़ने और जीवन कौशल शिक्षा से ही आया है।

आज रजेश्वरी की ही तरह कई बालिकाएँ इस शिक्षा से लाभान्वित हो रही हैं और

उनका जीवन बदल रहा है। उनमें आगे बढ़ने का साहस पैदा हुआ है। उनका आत्मविश्वास

बढ़ा है। बालिकाओं में आए इस बदलाव से पूरा समाज बदल रहा है। देश और समाज में

व्यापक बदलाव आए इसके लिए जरूरी है कि सभी स्कूलों में यह शिक्षा अवश्य दी जानी

चाहिए।