धममक्षेत्रे-कुरु्षेत्रे

फणीश्वरनाथ रेणु हिन्दी कहानियाँ

भादों की रात।

तुरत बारिस बन्द हुई है।

मेढक टरटरा रहे हैं। साँप ने बेंग को पकड़ा है, बेंग की दर्द-भरी पुकार पर दिल में दया आने के बदले, भय मालूम होता है। आसपास की झाड़ियों में फैला हुआ अन्धकार और भी खौफनाक हो जाता है। उसी झाड़ी से एक गज की दूरी पर खड़ा करामत खाँ सिपाही, कमांडर के इशारे की प्रतीक्षा कर रहा है।

बाँसों और पाट के खेतों में छर्रों की 'फुरहरी” जैसे जुगनू चमक रहे हैं। बीच-बीच में बिजली चमकती है। केले के पेड़ों से घिरे हुए झोंपड़े सामने में नजर आते हैं। जब-जब झोंपड़े दिखाई पड़ते हैं, करामत को अपने गाँव के अपने झोंपड़ों की याद आ जाती है।...कहीं उसके झोंपड़े के आसपास भी, रात में, इसी तरह पुलिस और मिलेटरीवाले बन्दूक ताने तो खड़े नहीं होंगे?

कौन जाने ?

और उसकी प्यारी बीवी अपनी बच्ची को छाती से सटाकर सोई होगी। माँ शायंद जगी हो... लेकिन, करामत से पचास गज की दूरी पर, पाटों के झुरमुट में खड़ा “गोरा! सिपाही “टाम” यह सबकुछ भी नहीं सोचता है। झाड़ियों के छोटे-छोटे बरसाती जोंकों से वह परेशान है। इन जोंकों के खौफ से वह पेशाब भी नहीं कर पाता है। <..फ्‌... ब्लाडी !

बार-बार पतलून का बटन वह खोलता और बन्द करता है। उसकी क्रुद्ध निगाह आसपास की झाड़ियों की फुनगी पर लपलपाते हुए उन “ब्लडी' हिन्दुस्तानी जोंकों पर और कान चौकस-बिगुल सुनने के लिए। बिजली चमकती है, गाँव के झोंपड़े नजर आते हैं। टाम को याद आती है 'जैक” की बात। कल '“जैक' रेड पार्टी में गया था। 'जशन” मनाया था जैक ने जी-भर। टाम के अन्दर का पशु भी धीरे-धीरे जागता है।...वह और पेशाब की हाजत को रोक नहीं पाता है।

टार्चसिगनल !-रेड करो!! नींद में विभोर गाँव में घुसता है-आगे-आगे करामत का जत्था और पीछे-पीछे “टाम” की टुकड़ी।

कुत्ते भूँकने लगे। सैकड़ों 'टॉर्च' की रोशनी जीभ लपलपाने लगी। खूँटे से बँधे हुए जानवर रस्सी तुड़ाकर भागे। भागों मट गोली मार डेगा'-दहल उठा गाँव। कुहराम शुरू हुआ। हजारों इंसान एक साथ रो पड़े। कुत्ते, इंसान, उनकी औरतें, उनके बच्चे !

वायनट-फिक्स !

चार्ज!

आह-ह!

कहराम और बढ़ता है। आवाज और भी दर्दीली होती जाती है। कुत्ते और भी तेजी से भूँकने लगते हैं।

कौन भागटा है!

फायर !

ट्ठाँय!.

बॉँसों के झुरमुट में, पास के पेड़ों पर सोए हुए परिन्दे फड़फड़ाकर उड़ भागे। रात अँधेरी होने पर भी आसमान मुक्त है, वे पाँखें फैलाकर उड़ सकते हैं। जहाँ जी चाहे जा सकते हैं। मगर, धरती पर, गाँवों में, झोंपड़ों के इंसान? वे तो घिरे हैं!

“बाबा हौ, अरे बाप मर गेल्हाँ रे बाप!”

चंडन कुमार कहाँ है, बटाव?

हुजूर हमरा कुच्छू ने मालूम ।

गॉडी का बच्चा, काला कुट्टा ।

घरों में घुसकर खोजा जाय।

भूखे कुत्तों की तरह टामियों की टुकड़ी टूट पड़ती है। पूर्वी मोर्चे पर मरने से पहले इन्हें खुलकर “मौज” करने का हुक्म है। हिन्दुस्तानी सिपाही के जत्थे में करामत के सिवा सभी हँसते हुए बढ़े। इस बार औरतों और बच्चों की चीख-पुकार से आसमान भी रो पड़ता है। मूसलाधार बरसा में टॉर्च की रोशनी अजीब-सी मालूम होती है।...घर-घर में गोरे और काले सिपाही!

“हे सरकार...” एक घर के कोनों में से किसी के लम्बे बालों को पकड़कर बाहर घसीट लाता है एक गोरा। लम्बा बाल! औरत। गोरा उन्मत्त हो जाता है।

आह......

सिस्‌...सटअप !

आँयग गि-गि-गि...” मुँह में कुछ ठूँस दिया गया शायद। गोरा अँधेरे में उसकी छाती टटोलता है फिर तुरन्त उठ खड़ा होता है। बूट की एक ठोकर देकर बड़बड़ाता है-“फ्‌...ओल्ड बिच ” फर्श पर पड़ी बुढ़िया बूट की ठोकर खाकर चिल्लाने की चेष्टा करती है “आँय गि-गि...

“माय री...”

टाम के हाथ एक चौदह वर्ष की बालिका पड़ती है। बरसा की रफ्तार और तेज हो जाती है। बिजलियाँ और जल्दी-जल्दी चमकने लगती हैं और फूल-जैसी बालिका के सीने पर बैठा इंसान और भी जानवर बनता जाता है। बिजली चमकती है-उसके सुन्दर मुखड़े को गोरा काट खाता है। बिजली चमकती, मुखड़े से लहू की बूँदें टपकती हैं।

बिजली चमकती है-बच्ची की निष्कलंक आँखें पथराती जाती हैं।

...जमीन पर उसका शरीर निस्पन्द पड़ा रहता है। 'टाम' खड़ा होकर पतलून का बटन लगाता है। फिर बिजली चमकती है-बच्ची की पलकें पिंपती नहीं, खुली की खुली ही रह जाती हैं... घर-घर से दबोचे हुए मुँह से घिधियाने की आवाज आती है।

बलिदान के समय पशु जिस तरह घिधियाते हैं। बच्चों के गले से खून निकल रहा होगा, उनकी रोने की आवाज से ऐसा ही मालूम होता है... करामत खाँ आर्म्ड फोर्स का सिपाही नं. 285 एक अँधेरी गली में चुपचाप खड़ा, नमकहरामी और नमकहलाली की सीमा पर झूलता है। वह गिनता है-उसके पास सिर्फ पन्द्रह गोलियाँ हैं।

सिर्फ पन्द्रह?

उसकी बीवी, उसकी बच्ची, माँ...सामने कोई छाया उसे देखकर छिप जाती है-“जाने भी दो, कोई बेचारा जान बचाकर भाग रहा है ।-करामत ने पहली नमकहरामी की।

गाँव में कुहराम जारी है। मर्दों पर लाठियाँ, संगीन और कोड़े बरसते हैं। गाँव-भर की बुढ़ियाँ बूट की ठोकरें खा रही हैं, जवान औरतें घर-घर में, झोंपड़े-झोंपड़े में जमीन पर बेहोश, दम तोड़ती कराह रही हैं।

और श्री पारस चौधरी, पास के गाँव के ही प्रमुख जमींदार, जो आदतन खद्दरधारी थे और जिन्होंने सिर्फ तारीख 0 अगस्त से मिल का कपड़ा पहनना शुरू किया था। ऐसे पारस चौधरीजी, एस.पी. साहब से कहते हैं, बार-बार कहते हैं-“घर घुसकर खोजा जाय, हुजूर, इस घर में देखा जाय, हुजूर, उसको पीटा जाय, हुजूर, वह भारी कांग्रेसी बदमाश है,” उसी पारस चौधरी के कहने पर एक घर में आग लगा दी जाती है। छप्पर भीगा हुआ है, इसलिए आग धीरे-धीरे सुलगती है। किन्तु उस मुर्दार रोशनी से भी अँधेरा दूर हो रहा है। रोशनी में करामत कुछ देखता है और उसका झूलना मानो शेष हो जाता है...खुले आसमान के नीचे, कीचड़ में एक औरत हाथ-पाँव मार रही है...गोरा नहीं, काला सिपाही...?

रामपरीक्षा सिंह?...और बगल में वह दो बरस की बच्ची गला फाड़कर रो रही है...रामपरीक्षा सिंह...उसकी बीवी...उसकी बच्ची...माँ...नमकहरामी... । वह निशाना लेता है-“ठाँय !”

करामत ने दूसरी नमकहरामी की। वह और चौदह बार नमकहरामी तो कर ही सकता है।...नमकहलालों से इस अकेला नमकहराम की जब मुठभेड़ होती है...ठाँय, ठाँय, ठाँय... !

अन्त में वह नमकहराम ठीक-ठीक सोलह बार नमकहरामी करने का मजा पाता है। आ...अल्लाह...!

भादों की अँधेरी रात । जिस समय गाँव में लूट मची हुई थी, दो माईल दूर एक जंगल में “आजाद दस्ते” की बैठक में हिंसा व अहिंसा के सवाल पर मतभेद हो चुका था। इलाके के पुराने और प्रतिष्ठित कांग्रेसी नेता श्री चन्दनकुमारजी, जिन्हें खोजने के लिए एक सारे गाँव का सत्यानाश कर दिया जांता है, अपने साथियों के साथ पूरे अहिंसक हो गए हैं और बाकी लोग अं. भा. कां. कं. के 8 अगस्त कै फैसले और एलान के मुताबिक अपने को अपना नेता मानकर, अपनी आत्मा की आज्ञा मानकर रायफलों, बमों, रिवाल्वरों और रुपयों का हिसाब-किताब कर रहे हैं। वें हिंसक हो चुके थे...।

करामत की पहली नमकहरामी के कारण, छिपकर भाग आनेवाला “आजाद दस्ता' का दूत सतना दौड़ता हुआ खबर देता है-''गाँव पर फौजी हमला हो गया है ।'

“मगर हम तो दूर हैं, सुरक्षित हैं /” चन्दनकुमारजी जवाब देते हैं क्योंकि वे उस समय अपने को सारे दल का नेता मानते थे।

“वे लूट रहे हैं!”

“वे तो करेंगे ही /”-चन्दनकुमारजी कहते हैं।

“वे औरतों को बेइज्जत कर रहे हैं!"

“क्या किया जा सकता है?” लाचारी जाहिर करते हैं चन्दनकुमारजी।

“गाँव-भर में एक औरत नहीं बची।”

“तैयार!” हिंसकों में से एक उठकर कहता है। सभी हिंसक उठ खड़े होते हैं। एक बढ़ता है, उसके पीछे सभी बढ़ते हैं। वे चले जाते हैं और चन्दनकुमारजी अपने दल के लोगों से कहते हैं-““गांधीजी की अहिंसा का मखौल उड़ानेवाले, इन मूर्खों को कौन समझावे। जाने दो... ।” जंगल से बाहर निकलकर, नया कमांडर चार-पाँच शब्दों का एक भाषण दे डालता है-“यदि इन्हें छोड़ दिया गया तो हजारों-हजार गाँवों की ऐसी ही दुर्दशा करेंगे ये। हमने यदि आज डटकर मुकाबला किया तो फिर समझ लीजिए, कि ऐसी घटना फिर नहीं घट सकती।”

“और मिलिटरीवालों को बुला लाए थे पारस चौधरीजी ।”-दूत 'सतना' कहता है।

“पारस चौधरी ?”

डेढ़ दर्जन हिंसकों ने दाँत पीसा, मानो बिजली चमक उठी। आसमान में नए बादल उमड़-घुमड़ रहे थे।

गाँव में कुहटाम थम गया था। कुछ औरतें धीरे-धीरे रो रही थीं और एकाध बच्चे रो रहे थे। जिस घर में आग लगाई गई थी, वह जलकर खाक हो चुका था, मगर आग लहलहा रही थी।

“मिलेटरीवाले घाट पार कर रहे हैं।'

“चलो ।”

आसमान में जोरों से बादल गरज उठता है। मिलेटरी और मिलेटरी अफसरों को लेकर दसों नाव किनारा छोड़ रही थीं। नदी के किनारे ऊँचे कगार पर एक मेंड़ के बगल में लेटकर डेढ़ दर्जन 'हिंसक' हिंसा के लिए तैयार हैं।

“उन्होंने लूटा है!”

“टू ठाँय, ट्‌ ठाँय...”

“उन्होंने मारपीट की है, जुल्म किया है!

“ट्‌ ठाँय,...ट ठाँय...”

उन्होंने औरतों को लूटा है।”

“ट-ठॉय, टू-ठाँय...'

'फड़ फड़ फडर र र र॒ फौजी अफसर का मशीनगन फड़फड़ा उठा।

घबराओ मत दोस्त! देबेन की लाश हटा दो, उसका रायफल ले लो ।...बंशी...की थैली में देखो कारतूस हैं!...बंशी को एक चुल्लू पानी पिलाओ! लेट जाओ, दाहिनी नाव पर निशाना करो... 'धड़े धड़ाम! धड़ धड़ाम!!-आजाद दस्ते की ओर से हैंडग्रेनेड' फेंके जाते हैं। बिजली गिरने-जैसी आवाज होती है, नदी का पानी बाँसों उछलता है।...

सब शान्त!” सो 'शान्त नहीं, पारस चौधरी को देखना होगा। चलो!” चार कम डेढ़ दर्जन ने अपने साथियों की लाश को कन्धे पर टाँग लिया और चले।

बाद में खबर फैली-“बिसनपुर मिलेटरी रेड में एक मुसलमान सिपाही को बलात्कार करते देखकर एक हिन्दू सिपाही ने रोका। इस पर मुसलमान सिपाही ने उसे गोली दाग दी। इसके बाद तेरह हिन्दू और एक गोरा को उसने मार दिया। आखिर में वह भी मारा गया। इस पर गोरे और हिन्दू सिपाहियों में फिर घाट पर लड़ाई हो गई। करीब-करीब चालीस गोरा मिलेटरी, दस हिन्दू और पाँच अफसर मारे गए।” जनता ने, इस खबर को सुनकर, मन-ही-मन उन हिन्दू सिपाहियों की धीरता को सराहा और करामत के नाम पर थूका-“साला।” 8 यह भी खबर फैली-“राधोपुर के पारस चौधरी के घर में क्रान्तिकारियों ने सशस्त्र डकैती की।

रुपये, गहना-जेवर लूट लेने के बाद पारस चौधरी को गोली से उड़ा दिया।

कप ली जनता ने, इस खबर को सुनकर क्रान्तिकारियों के प्रति घृणा प्रकट की।

अभी हाल में ही, एक सभा में श्री चन्दनकुमारजी एम.एल.ए. का समाजवादी विरोधी भाषण हो रहा था क्योंकि समाजवादियों ने यहाँ के किसानों को न जाने कैसे समझा दिया कि अब जमींदारी प्रथा नहीं रह सकती और जमीन पर जोतनेवालों का हक होना चाहिए और किसान मजदूरों के राज का मतलब ही है असली सुराज।

एम.एल.ए. साहब के फायल और बिस्तर ढोनेवाले, स्थानीय कांग्रेस कमिटी के एक बा और भावी एम.एल.ए. साहब ने कहा-“'वे गाँव की शान्ति भंग करते !

चन्दनकुमारजी एम.एल.ए. साहब कह रहे थे-“भाइयो! याद रखिए। ये वही लोग ट जिन्होंने पारस चौधरी जैसे प्रमुख कांग्रेस भक्त को गोली मार दी थी।

ये डकैत हैं, देश के दुश्मन हैं...

उनके फायल ढोनेवाले शान्ति के अग्रदूतजी ने जोरों से ताली पीटकर नारा लगा दिया-“देशद्रोही ! मुदाबाद !”