जैव

फणीश्वरनाथ रेणु हिन्दी कहानियाँ

निर्मल ने मन्द-मन्द मुस्कुराती, कमरे में प्रवेश करती हुई-विभावती से पूछा-“क्यों क्या बात है ?”

विभावती हँसती हुई बोली-“बात कया होगी ?

बात जो होनी थी सो हो गई ।”

विभा ने स्वामी के हाथ में आज की डाक से आई हुई चिट्ठी दी। निर्मल ने पढ़ना शुरू किया-“पूजनीया भाभी,...आगे समाचार यह है कि पिछले सप्ताह से ही सुबह उठकर उल्टी-मतली...लेकिन, मेरी सासजी बहुत खुश हैं।... ।”

पत्र में ननद ने 'भौजाई” को विस्तारपूर्वक यानी खोलकर सबकुछ लिखा है। किन्तु निर्मल इससे आगे कुछ नहीं पढ़ सका।

“जो बात होनी थी सो हो गई न ? मैं जानती थी। चाहे पचास रुपए की किताब के प्रेमोपहार' या सौ रुपए की-जो बात होनी थी सो हो गई ।” विभा हँसकर।

निर्मल चिढ़ गया-“बेमौके की ऐसी हँसी सुनकर मेरी देह जल जाती है।”

विभावती समझ जाती है, कि पति अभी बहुत चिढ़े हुए हैं। वह कमरे से बाहर चली गई, हँसती-मुस्कुराती।

निर्मल के सिर पर मानो वज्र गिर पड़ा है।

उसका माथा चकरा रहा है। कान के पास झींगुर बोलने लगे हैं।

शारदा गर्भवती माने प्रेगनेन्ट हो गई ?

उसकी एकमात्र छोटी बहन, सोलह साल की शारदा - बिना माँ-बाप की-“कोरपच्छ” लड़की।

निर्मल से ग्यारह साल छोटी शारदा! निर्मल की माँ ने आँख मूँदने के पहले-विभावती से कहा था-“बहू! अब तू ही इसकी माँ... ।”

पिता ने मरते समय निर्मल से कहा था-“बेटा!

बस, एक दायित्व तुम्हारे सिर पर दे जाता हूँ।

शारदा को 'सुपात्र' के हाथ में देना ।”...इतना खर्च-वर्च सब बेकार ? यह तो पूरा 'कुपात्र” निकला ।

और इसी 'कुपात्र' के फेर में पड़कर उसने अपनी दुलारी बहन की शादी कच्ची उम्र में ही कर दी...अंग्रेजी तथा हिन्दी में उपलब्ध दाम्पत्य-जीवन को सुखमय बनानेवाली प्रसिद्ध किताबों का एक सेट उसने विशेष रूप से भेंट किया था शारदा के पति प्रोफेसर सुकुमार राय को निर्मल ने हिसाब लगाकर देखा...तो, इसका अर्थ हुआ कि सुहागरात में ही... ?

शारदा की शादी हुए तीन ही महीने हुए हैं। अभी (प्रिंस होटल” का बिल भुगतान देना बाकी है। और...और... ?

पड़ोस के फ्लैट की बूढ़ी मौसी आई है।

शारदा को बहुत प्यार करती थी मौसी। विभावती ने मौसी को भी शुभ संवाद सुना दिया-“हाँ, तीन महीने”

“विभा !”-निर्मल ने उच्च स्वर में ही पुकारा। प्रसन्‍नता से बूढ़ी मौसी के चेहरे की झुर्रियाँ खिल पड़ीं।

“कर दिया न ब्राडकास्ट ? तुम लोगों के पेट में कोई बात जो पचे... ।”

इस बार विभा ने जवाब दिया-“तुम तो चिढ़कर बेकार भुर्ता हुए जा रहे हो ”

“बेकार माने ?...शर्म की बात है। इस कच्ची उम्र में...मुश्किल है...शारदा मर गई समझ लो।”

“क्यों 'कुलच्छन' की बोली बोलते हो? माथा गर्म करने से कुछ नहीं होगा। आज ही अस्पताल में 'साइड-रूम” के लिए दर्खास्त दे दो ।”

विभा रसोईघर में चली गई।

निर्मल सोचने लगा-सच ही तो! माथा गर्म करने से क्या होगा। आज ही अस्पताल में 'साइड-रूम' के लिए दर्खास्त दे देना ठीक होगा। प्रोफेसर सुकुमार राय! फर्स्ट क्लास फर्स्ट...गोल्ड मेडलिस्ट हैं। कुपात्र कहीं का!...आजकल के नौजवानों में यही ऐब-डिग्री से लदे हुए गधे !...लेकिन, हिसाब से तो...?

सुहागरात में ही 'कंसीव' किया होगा शारदा ने क्योंकि उसके बाद 'मेहमान' भागलपुर चला गया था। दो महीने के बाद आकर शारदा को ले गया है। और एक महीने के बाद यह पत्र...?

दोपहर को भोजन 'रुचा” नहीं तो विभा ने मुँह फुला दिया-““इस तरह खाना-पीना छोड़ने से क्या होगा?”

“विभा! मैं प्रार्थना करता हूँ...मुझे शान्तिपूर्वक इस समस्या पर कुछ सोचने भी दोगी ?”

“पूछती हूँ, यह भी कोई समस्या है ?”

“तुम भी बूढ़ी मौसी के सुर में सुर मिलाकर ऐसी बातें करोगी, इसकी मुझे उम्मीद नहीं थी।”

“तो क्‍या करूँ? सिर पकड़कर रोऊँ ?”

“विभा”-निर्मल की आँखें डबडबा आई-“शारदा मर जाएगी। जरूर मर जाएगी ।”

“तुम्हारे कहने से मरेगी ? कुछ नहीं होगा। तुम्हारी दुलारी बहन शारदा को एक गोलमटोल सुन्दर मुन्ना के सिवा और कुछ नहीं होगा।”

“वह इतनी दुबली है सो... ।”

“सो जानेगी डॉक्टर मिस जोजेफ और जानेंगे स्त्रीरोग के पुरुष विशेषज्ञ डॉक्टर शर्मा... ।”

डॉक्टर शर्मा का नाम सुनते ही निर्मल को काम की बात सूझी-क्यों न डॉक्टर शर्मा को फोन करके सलाह ले? उसने डिरेक्टरी में डॉक्टर शर्मा का नम्बर खोजकर

निकाला और ढिरेक्टरी के मुखप्रृष्ठ पर लिखने के बाद उसने डायल पर नम्बर मिलाया। चोंगा रखकर फिर डायल किया। बहुत देर तक उधर घंटी बजती रही फिर किसी आदमी ने चिढ़ी आवाज में पूछा - “हैलो ?”

“एँ ? डॉक्टर शर्मा हैं? अस्पताल में? देखिए साहब, इस तरह झल्लाइए मत । आप कौन हैं?...तुम डॉक्टर साहब के ड्राइवर होकर ऐसी बातें कहोगे... ?”

उस छोर पर चोंगा रख दिया गया। इसके बाद जब अस्पताल का नम्बर लगाया तो दूँ-ऊँ-ग, दँ-ऊँ-ग...।

निर्मल के कमरे से बहुत देर तक टेलीफोन डायल करने की आवाज आती रही- क्रिर, क्रिर, क्रिर !

फिर मन कड़वा हो गया निर्मल का।

विभा आई और पास बैठकर गम्भीरतापूर्वक बातें करने लगी-“देखों! तुम क्या सलाह लेना चाहते हो डॉक्टर से । यही न कि कम उम्र की कमजोर लड़की”

“विभा! तुम फिर छेड़ने आईं ” निर्मल कहते-कहते रुक गया। उसने अपनी पत्नी के चेहरे पर सहानुभूति की रेखाएँ देखीं। उसे विभा का इस तरह गम्भीर हो जाना अच्छा लगा।

दोपहर के भोजन के बाद विभा रोज एक बीड़ा पान खाती है।

पान मुँह में रखकर जब वह बोलने लगती है तो निर्मल उसके क्रमशः लाल होते हुए हॉ्ों को देखता रहता है। विभा बोली-“तुम सुकुमार को एक चिट्ठी लिख दो और अगले महीने ही जाकर शारदा को लिवा लाओ ।”

“तुम ठीक कहती हो। मैं भी यही सोच रहा था।”

विभा अब मुस्कुराई। निर्मल बोला-“जानवर है। क्या कहा जाए इस सुकुमार को ?”

विभा ने बात पूरी की-“किसकों कहा जाए? न बहन शारदा को धैर्य और न बहनोई सुकुमार साहब को संतोष... ।”

“अब मार खाएगी विभा ”

विभा हँसती हुई लेट गई पति के बगल में और अपनी उँगलियों पर जोड़ने और जोड़कर हिसाब निकालने लगी।

शारदा का “एसपेक्टिंग डेट” यानी “संभावित तिथि” अर्थात्‌ फरवरी में “मासिक धर्म” बन्द हुआ है तो नवम्बर के दूसरे सप्ताह में ? वह पति को गुदगुदाती बोली-“होनेवाले मामू साहब!

एक “टोकरी” ऊन चाहिए...जाड़े में जन्म लेनेवाले शिशु को गर्म रखने के लिए पसमीना-ऊन... ।”

भाई और भाभी ने मिलकर शारदा को बचा लिया।

चौथे महीने में ही निर्मल भागलपुर जाकर, लड़-झगड़कर शारदा को पटना लिवा लाया। पहले हर महीने, बाद में प्रत्येक पखवारे में हेल्थ विजिटर” और “मिडवाइफ' से जाँच करवाकर - वे सलाह लेते और तदनुसार परिश्रम, भोजन और दवा की व्यवस्था इसके बावजूद शारदा की जान संकट में पड़ गई।

नवम्बर के दूसरे सप्ताह में शारदा बारह घंटे तक अस्पताल में सिर कटी हुई चिड़िया की तरह दर्द से तड़फती-छटपटाती रही। अन्त में सी. एस. (सिजेरियन-सेक्शन अर्थात्‌ पेट चीरकर) करके बच्चा निकाला गया। बच्चा स्वस्थ है छै पौंड का बेबी!

अस्पताल से पन्‍्द्रह दिन के बाद जब डेरे पर आई शारदा तो एक दिन चोर की तरह मुँह छिपाता हुआ आकर खड़ा हुआ प्रोफेसर सुकुमार विभा हँसकर बोली-““आ गए, आ गए! जुलियस सीजर के पिता सुकुमार साहब...प्रोफेसर ऑफ बोटानी ।”

शाम को निर्मल और विभा तस्वीर देखने गए-बहुत दिनों के बाद। पिछले दो महीने से दोनों परेशान होकर दौड़ते-भागते रहे हैं।

राह में विभा बोली-“मेहमान शायद शारदा को लेने आया है।”

निर्मल बोला-“बोले तो मेरे सामने। जूता खाएगा।”

लौटते समय विभा बोली-“कल एक बार डॉक्टर जोजेफ की क्लिनिक में चलोगे ?

“क्यों ? अब क्या है ?”-निर्मल ने चौंककर पूछा।

विभा बोली-“शारदा कहती थी कि एक बार डॉक्टर जोजेफ ने बुलाया है।”

विभा और निर्मल । विवाह के पाँच वर्ष बाद भी जब विभा को “कुछ” नहीं हुआ तो निर्मल ने डॉक्टरों को दिखलाकर सलाह ली थी। एक छोटा-सा ऑपरेशन भी हुआ था। किन्तु अन्ततः दोनों ने मन-ही-मन मान लिया था-कुछ नहीं होगा। विधि के विधान को उन्होंने स्वीकार कर लिया था। वे प्रसन्‍न थे, सुखी थे, कहीं कोई रिक्तता नहीं कोई कमी. नहीं महसूस करते थे। किन्तु उसकी बहन शारदा के आने के बाद से

दूसरे दिन डॉक्टर जोजेफ की क्लिनिक से लौटकर शारदा अपने पति और भाभी के साथ खिलखिलाकर हँस रही थी-“'देखा भाभी! मैंने कहा था न? ठीक हुआ न, मेरी छूत लग गई न? हा-हा? मैं जानती थी। तुम्हारे लक्षण सभी...”

निर्मल ने पूछा-“'क्या बात है शारदा ?”

वे सभी चुप हो गए। उस कमरे से विभा की गिड़गिड़ाती आवाज और शारदा की मद्धिम खिलखिलाहट के साथ शारदा के शिशु के किलकने की सम्मिलित आवाज आई। निर्मल ने फिर पूछा-“शारदा! क्या है ?”

शारदा ने कोई जवाब नहीं दिया। वह उठकर पूजाघर में गई और शंख फुूँकने लगी-“धू-ऊ-ऊ। धू-ऊ-ऊ!

प्रोफेसर सुकुमार लजाते और मुस्कुराते हुए निर्मल को समझा रहे थे-““भाईजी! वनस्पति-जगत्‌ में भी ऐसा होता है।

इस प्राकृतिक प्रक्रिया को हमारे शास्त्र में 'पोलिनेशन' कहते हैं-पी. ओ. एल. एल. आई. एन. ए. टी. इ. अर्थात्‌ फर्टिलाइजिंग ए फ्लावर बाइ कनवेईग...नारियल या पपीता अथवा सुपारी का कोई पेड़ अगर नहीं

फलता है तो पास में एक दूसरा पेड़ लगाया जाता है और जब दूसरा पेड़ फूलने-फलने लगता है तो पहला निष्फला पेड़ भी... ।”

निर्मल ने झुँआलाकर कहा-“क्या बक रहे हो, मैं कुछ नहीं समझ रहा ।...देखो सुकुमार, मैं कोई बहस, कोई बात नहीं करना चाहता-नहीं सुनना चाहता। शारदा सालभर यहाँ रहेगी। इस बीच कोई... ।”

सुकुमार तुतलाकर कह रहा था-“भाई साहब...मतलब...आप तो बेकार...”

हँसती हुई शारदा ने खिड़की के उस पार से ही अपने भाई और पति और दुनिया-जहान को सुनाने के लहजे में कहा-“मैं जाऊँगी ही नहीं। कोई जबर्दस्ती ले जाएगा क्या?...भाभी को डॉक्टर ने...।”

लगा, शारदा का मुँह किसी ने दबा दिया। उसकी बोली मुँह में ही रह गई।

सुकुमार ने झाँककर देखा-भाभी अपनी ननद का मुँह हथेली से बन्द करके हँस रही है।

सुकुमार ने कहा-“अच्छी बात है भाभी! यह “शुभ संवाद” मुझे ही सुनाने का अवसर आपने दे दिया। बहुत धन्यवाद! भाईजी, बात यह है कि भाभी...भाभी को डॉक्टर जोजेफ ने जाँच कर “पक्की” रिपोर्ट दे दी है-मतलब भाभी ने “कंसीव'... अर्थात्‌ वही जो मैं कह रहा था न पोलिनेशन...”