दो दोस्त थे। मोहन और राम।
बचपन की मित्रता युवावस्था तक
आते-आते और गहरी हो गई।
दोनों ने मिलकर कपडे का व्यापार शुरू किया।
दोनों दोस्त पूरी मेहनत और लगन से व्यापार करने लगे।
देखते ही देखते दोनों का साझा व्यापार खूब चल निकला।
व्यापार से संबंधित निर्णय दोनों मिलकर लेते थे।
कोई निर्णय ऐसा न रहा,
जो दोनों में से किसी एक ने अकेले लिया हो।
उनके सटीक निर्णय,
आपसी प्यार व रजामंदी, मेहनत और लगन से उनका व्यापार दिन
दोगुनी रात चौगुनी तरक्की करने लगा।
उनकी इस तरक्की से शहर
के अन्य कपड़ा व्यापारी उनसे ईर्ष्या करने लगे।
वे दोनों मित्रों में फूट डालने का अवसर खोजने लगे, क्योंकि
वे जानते थे कि अगर दोनों मित्रों के रिश्ते में ददर आ गई तो उनके
व्यापार पर भी इसका गहरा असर पडेगा।
एक बार मोहन को किसी
काम के सिलसिले में एक दिन के लिए शहर से बाहर जाना पड़ा।
परन्तु मोहन को तीन-चार दिन का वक्त लग गया।
राम ने व्यापार के सिलसिले में एक बड़ा सौदा करना था।
उसने मोहन का तीन दिन तंक इंतजार किया। फिर उसे लगा कि
अगर यह सौदा जल्दी नहीं किया तो व्यापारिक लाभ का एक
अच्छा मौका हाथ से निकल जाएगा। उसने वह सौदा कर लिया
और सोचा कि मोहन के आते ही उसे बता दूंगा। मोहन जब शहर
वापिस आया तो अन्य व्यापारियों ने उसे भड़का दिया कि राम ने
अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए तुम्हारे बिना बड़ा सौदा कर लिया
है। मोहन लोगों के बहकावे में आकर बिना सोचे विचारे राम से इस
बात पर झगड़ पड़ा और उससे कहने लगा- राम! मुझे यकीन नहीं
आता कि तुमने बिना मेरी राय जाने यह सौदा कर लिया। तुम्हारी
हिम्मत कैसे हो गई?राम ने मोहन को समझाने का बहुत प्रयास
किया, किंतु मोहन कुछ भी समझने को तैयार नहीं था।
उसने राम से कहा कि कल ही व्यापार को अलग करने की
प्रक्रिया शुरू कर देंगे। राम से यह कहकर मोहन अपने घर आ गया।
मोहन की मां ने मोहन को परेशान देखकर परेशानी का कारण पूछा
तो उसने सब बता दिया। मां ने गंभीरता से सोच-विचार किया और
फिर मोहन से कहा- यह जो हमारे आंगन में आम का पेड़ है इसके
खूखे व पीले पत्ते कहां गए?मोहन ने कहा- गिर गए होंगे।
मां ने कहा- अगर नहीं गिरते तो अच्छा होता।
मोहन ने अचरज से कहा-अगर नहीं गिरते तो पेड़ कितना खराब लगता?
तब मां ने समझाया- इस तरह तुम भी अपने मन से राम के प्रति कुविचार
हटाओ और शांत मन से व्यापारिक विषय पर राम से वार्तालाप करो,
हल जरूर निकल आएगा।
मोहन को तत्क्षण अपनी भूल का एहसास
हो गया।
वह तुरन्त राम के पास गया और हाथ जोड़कर उससे क्षमा
मांगी। तब राम ने मोहन को शांति से बैठकर व्यापारिक सौदे के बारे
में समझाया।
मोहन को जब सब समझ में आया तो उसने राम की
प्रशंसा की।
सार यह हे कि दूसरों के बहकावे में आने की बजाय अपने
विवेक ओर बुद्धि से काम लें।
क्योंकि दूसरे लोग जो आपकी तरक्की
और सुख से जलते हैं वह आपका पतन देखकर खुश होते हैं।
अगर दो भाइयों में अथवा दो मित्रों में कोई व्यापारिक या पारिवारिक विवाद
है तो उसे आपस में मिल कर घर की चारदीवारी के अंदर बैठकर
शांत मन से सुलझाएं, हल अवश्य निकलेगा।
दो भाई, मित्र अथवा रिश्तेदार जब कोर्ट कचहरियों के चक्कर
में पड़ जाते हैं तो विवाद का कभी न कभी हल तो अवश्य निकल
आता है, किंतु मन के अंदर जो एक दूसरे के प्रति खटास आ जाती
है, वह आने वाली कई पीढ़ियों तक खत्म नहीं होती।