जब पॉडेत जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे,
तब उन्हीं के प्रयासों से कवि सम्मेलन शुरू हुआ था।
उस समय राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जैसे महान् रचनाकार इस सम्मेलन में शिरकत करते थे।
एक बार जब कवि सम्मेलन आयोजित किया गया और काव्यपाठ के बाद समापन की बेला आई, उस समय पंडित नेहरू और दिनकर अपने कुछ साथियों के साथ वापस लोट रहे थे।
लौटते समय दिनकर अपने मित्रों के साथ आगे थे और पंडित नेहरू उनके पीछे।
सीढ़ियों से उतरते वक्त अचानक पंडित जी का पैर फिसला और वे गिरते,
इससे पहले ही उन्होंने अपने दो कदम आगे चल रहे दिनकर जी के कंधे पर हाथ रख दिया।
आभार व्यक्त करते हुए पंडित नेहरू ने कहा- “दिनकर जी शुक्रिया, आज आपके कारण में हादसे का शिकार होते-होते बच गया।
मैत्री के ही भाव में दिनकर जी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- “कोई बात नहीं पंडित जी, जब-जब किसी देश की राजनीति लडखडाती है, साहित्य उसे सहारा देता है।
साहित्य का धर्म है कि वह समाज को सही दिशा की ओर उन्मुख करे।
' गौरतलब है कि रूस के साम्यवादी आंदोलन से लेकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम तक में साहित्यकारों ने समाज को जाग्रत और आंदोलित करने में बड़ी भूमिका निभाई।
कई पुस्तकें इसलिए तत्कालीन तानाशाह सरकारों ने जब्त कर लीं क्योंकि उनकी सामग्री न केवल गलत दिशा में चली राजनीति को ठीक करने वाली थी,
अपितु उसके माध्यम से समाज को भी सही दिशा की ओर जाने के संकेत मिलते थे।
वास्तव में पुस्तकें समाज, देश और पूरे विश्व की उन्नति के आधार हैं।