दृढ़ संकल्प के बल पर मूर्ख से हुए बुद्धिमान
जर्मनी के जोसेफ बर्नार्ड अपनी बाल्यावस्था से लेकर किशोरावस्था तक अत्यंत बुद्धिहीन रहे।
उनके पिता ने अच्छी से अच्छी ट्यूशन लगवाई, किंतु कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला।
वे अत्यंत मेधावी शिक्षकों को जोसेफ बर्नार्ड को शिक्षण देने हेतु नियुक्त करते थे, किंतु वह इतने जड़ बुद्धि थे कि किसी भी प्रकार से ज्ञान व शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते थे।
एक दिन उनके पिता इस बात से नाराज होकर बोले- “तेरे जैसी बुद्धू औलाद से तो कुत्ते का बच्चा पालना अच्छा होता था।
' यह बात जोसेफ को चुभ गई।
तब उन्होंने पूर्ण मनोयोग और लगन से अध्ययन आरंभ किया।
जिससे चमत्कारी परिणाम सामने आए और वे अत्यधिक मेधावी बने उन्होंने बाईबिल कंठस्त कर ली और कुछ ही वर्षो में वे नो भाषाओं के मूर्धन्य विद्वान बन गए।
अपने विभाग के नो अधिकारियों को एक साथ बेठाकर कितने ही आदेश वह एक साथ लिखवा देते और अनेक सेवा कार्यो को अंजाम देते।
उन्हें लोग चमत्कारी पुरुष मानने लगे।
जर्मनी के इतिहास में उन्हें मेधा का धनी माना जाता है, जबकि किशोरावस्था तक वे अत्यंत मूढ़ कहे और समझे जाते थे।
उपरोक्त कथा का सार यह है कि संकल्पित होकर लक्ष्य प्राप्ति के लिए किया गया प्रयास व्यक्ति के जीवन में असाधारण परिवर्तन ला देते हैं।
इसलिए बेहद जरूरी है कि पहले अपने जीवन के लक्ष्य निर्धारित किए जाएं, फिर दृढ़ संकल्पित होकर उन्हें प्राप्त करने में जुट जाएं।
इससे सफलता अवश्य प्राप्त होगी।