बुद्धिबल से पाई विजय

बुद्धिमान की बुद्धि कांच की तरह होती है, बुद्धिमान की बुद्धि स्वर्ग के प्रकाश की तरह दर्शाता हैं ।

एक जंगल में हाथियों के समूह के साथ उनका मुखिया चतुरदंत रहता था।

एक बार उस जंगल में कई वर्षों तक पानी नहीं बरसा।

अकाल की स्थिति निर्मित हो गई।

चतुरदंत ने कुछ हाथियों को पानी की खोज में जंगल से बाहर भेजा।

उन्होंने आकर एक सरोवर के विषय में बताया।

सभी हाथी अगले दिन वहां पहुंचे और जीभरकर पानी पिया, स्नान किया और दिनभर जलक्रीड़ा की।

उस सरोवर के चारों ओर फैली घास पर खरगोश रहते थे।

हाथियों के इधर-उधर आने-जाने से उनके पैरों के नीचे कई खरगोश दबकर मर गए।

हाथियों के जाने के बाद खरगोशों ने विचार किया कि यदि हाथी रोजाना यहां आएंगे तो हममें से कोई भी नहीं बचेगा।

एक बुजुर्ग खरगोश ने सुझाव दिया कि हमारा एक साथी चंद्रमा का दूत बनकर हाथियों के राजा के पास जाकर भगवान्‌ चंद्रमा का संदेश दे कि इस सरोवर के चारों ओर उसके परिजनों का निवास है,

जिनके हाथियों के पैरों तले कुचले जाने की आशंका से उन्हें इसके पास न आने की आज्ञा दी जाती है।

अगर हाथियों ने भगवान्‌ चंद्रमा की बात नहीं मानी तो उनके क्रोध से हाथियों का विनाश हो जाएगा।

लंबकर्ण नामक एक बुद्धिमान खरगोश ने चतुरदंत को यह संदेश दिया और प्रमाणस्वरूप तेजी से बहते सरोवर के जल में हिलते चंद्रमा को दिखाकर कहा- गौर से देखो।

भगवान्‌ चंद्रमा क्रोध से कांप रहे हें ?

चतुरदंत ने भयभीत होकर हाथियों को उस सरोवर की ओर न जाने का आदेश दिया और नया जलम्रोत खोजने को कहा।

सार यह है कि बाहुबल न होने पर बुद्धिबल से काम लेने से सफलता प्राप्त होती है।