संकट के समय भी की स्त्री सम्मान की रक्षा
रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में चंद्रशेखर आजाद व अन्य क्रांतिकारी मातृभूमि को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से धन एकत्रित करने प्रतापगढ़ पहुंचे।
वे वहां के एक सूदखोर महाजन के घर डाका डालने आए थे।
ये क्रांतिकारी उन्हीं स्थानों पर डाका डालते थे, जहां बेईमानी का पैसा एकत्रित कर रखा गया हो और यह महाजन भी ऐसे ही लोगों में से एक था।
निर्धनों को ये लोग कभी नहीं सताते थे।
जब आजाद आदि महाजन के घर में घुसे तो अंदर अधिकतर महिलाएं थीं और वे बड़ी साहसी थीं।
जब उन्होंने क्रांतिकारियों को डाका डालने की कोशिश करते देखा तो वे संघर्ष पर उत्तर आईं।
उनमें से एक महिला ने आजाद की बांह पकड़ ली और उनकी पिस्तौल भी छीन ली।
आजाद ने उसे लोटाने की विनती की।
इसी बीच गांव वालों को भी खबर लग गई और वे क्रांतिकारियों के विरुद्ध जुटने लगे।
आजाद को छोड अन्य क्रांतिकारी भाग गए, क्योंकि उन पर ग्रामीण पत्थर बरसाने लगे।
ग्रामीणों को डराने के लिए बिस्मिल ने दो हवाई फायर किए और सभी को लेकर आगे निकल गए।
जब आजाद को उन्होंने अपने साथ न पाया तो वापस लौटने का विचार किया।
तभी आजाद आ गए।
एक क्रांतिकारी ने कहा- “क्या बलप्रयोग के जरिए उस महिला से पिस्तौल नहीं छीन सकते थे ?
” आजाद बोले- “स्त्री पर हाथ उठाना निति विरुद्ध है और कैसी भी स्थिति हो मैं यह नहीं कर सकता।'
बस्तुतः विपरीत स्थिति में भी नीतिपूर्ण आचरण समाज का वातावरण पवित्र बनाए रखने के साथ-साथ संबंधित व्यक्ति को पतन से बचाकर
आत्मिक शांति प्रदान करता है। हमें हर हाल में अपने आचरण व चरित्र को शुद्ध रखना चाहिए।