मितव्ययी रहकर की जरूरतमंदों की सहायता
शांतिस्वरूप भटनागर और मेघनाद साहा जैसे विश्वविख्यात वैज्ञानिकों के गुरु प्रफुल्लचंद राय अपने विचार और आचरण दोनों स्तर पर अनुकरणीय व्यक्तित्त्व के स्वामी थे।
कई उदाहरणों से यह बात पुष्ट होती है।
जैसे, वे समय का अपव्यय कभी नहीं करते थे। धन के अपव्यय से भी उन्हें सख्त एतराज था।
वे खादी के वस्त्र पहनते थे और दूसरों से अपना काम कभी नहीं कराते थे।
स्वयं अपने कपड़े धोते और जूतों पर पॉलिश भी खुद करते थे।
अपने आहार पर भी उनका कड़ा नियंत्रण था।
एक दिन एक छात्र, जो उनके भोजन की व्यवस्था करता था, डेढ़ आने के केले उनके लिए ले आया, जबकि प्रतिदिन मात्र दो पैसे के केले आते थे।
ताजे और सुस्वाद केले देखकर छात्र श्रद्धावश अपने शिक्षक के लिए उस दिन कुछ अधिक केले खरीद लाया,
किंतु प्रफुल्लचंद राय ने धन का ऐसा अपव्यय करने पर उसे डांटा और भविष्य में ऐसा न करने का आदेश दिया।
उसी दिन एक सामाजिक कार्यकर्ता ने अनाथ बच्चों के लिए उनसे सहायता मांगी, प्रफुल्लचंद राय ने उसी छात्र को बुलाकर पूछा कि बैंक में उनका कितना धन जमा है ?
छात्र ने उन्हें बताया कि 3500 रुपए जमा हैं।
प्रफुल्लचंद राय ने 3000 रुपए का चेक काटकर उस सामाजिक कार्यकर्ता को दे दिया।
अपने व्यक्तिगत जीवन में एक आने के लिए छात्र को डांटने वाले शिक्षक द्वारा जरूरतमंद को यह सहायता देते देख छात्र श्रद्धाभिभूत हो गया।
वस्तुत: अपनी आवश्यकताओं को संतुलित रखकर दूसरों की सहायता करने वाला स्वयं के लिए विश्वास का एक ठोस आधार बना देता हे।