घर का भेदी सेनापति

कुशलगढ़ के राजा वीरभद्र को एक दिन सेनापति ने सूचना दी

“महाराज! कल रात राजमहल में हमारे एक सैनिक की हत्या हो गई है और उसके शव के पास से यह पत्र मिला है।

राजा ने वह पत्र पढ़ा, जिसमें राजा को धमकी दी गई थी कि यदि वे शीघ्र ही कुशलगढ़ का सिंहासन खाली नहीं करेंगे, तो रोज एक सैनिक मारा जाएगा।

राजा ने हत्यारे को खोजने का आदेश दिया।

इसी बीच वीरभद्र क॑ सुपुत्र बलभद्र का शिक्षा पूर्ण कर राज्य में आगमन हुआ।

राजकुमार बलभतद्र ने महल में सुरक्षा-व्यवस्था का भार स्वयं पर लिया।

उसने सैनिकों को आज्ञा दी कि वे चार-चार सैनिकों का समूह बनाकर पहरा दें।

परिणामस्वरूप उस रात किसी भी सैनिक की हत्या नहीं हुई।

इसी योजना के अनुसार पहरा देने पर अगले चार दिन तक कहीं कोई हत्या नहीं हुई।

तब सेनापति ने राजकुमार से कहा- “लगता है कि हत्यारा डर गया है।

' राजकुमार ने कहा- 'हां मुझे भी लगता है कि हत्यारा डर गया है।

राजकुमार को सेनापति पर कुछ शक हुआ।

उसने राजमहल के पिछले बुर्ज़ पर एक ही सैनिक तैनात किया।

जब ऐसा किया गया तो, हत्यारा उसे मारने पहुंच गया, किंतु जैसे ही उसने सैनिक पर वार किया, छिपकर बैठे राजकुमार ने उसे पकड़ लिया।

वह हत्यारा सेनापति निकला।

सेनापति ने कबूल किया कि पड़ोसी राजा ने उसे आधे राज्य का लालच दिया था।

राजा वीरभद्र को अपने इतने विश्वस्त सेनापति द्वारा धोखा देने पर दुःख हुआ।

सेनापति को जेल में डाल दिया गया।

वस्तुत: कोई भी समस्या सामने आने पर बाहर वालों के साथ अपने घर वालों व विश्वासपात्रों की भूमिका की पड़ताल भी करनी चाहिए, क्योंकि कभी-कभी लोभ या विवशतावश अति विश्वासपात्र भी धोखा कर बैठते हैं।