भूतपूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम के जीवन से जुड़ी एक घटना है।
वायुसेना में चयन न होने की वजह से वे काफी दुखी थे।
मानसिक शांति की खोज में वे स्वामी शिवानंद के आश्रम पहुंचे।
स्वामी जी का भव्य व्यक्तित्त देखकर कलाम बहुत प्रभावित हुए।
जब उन्होंने स्वामी जी को अपना परिचय दिया, तो वे बडे स्नेह से उनसे मिले।
कलाम ने उस भेंट के विषय में एक जगह लिखा है- “मेरे मुस्लिम नाम की उनमें जरा भी प्रतिक्रिया नहीं हुई।
मैंने उन्हें वायुसेना में अपने नहीं चुने जाने की असफलता के विषय में बताया तो
वे बोले- “इच्छा, जो तुम्हारे हृदय और अंतरात्मा से उत्पन होती है, जो शुद्ध मन से की गई हो, एक विस्मित कर देने वाली विद्युत्त चुंबकीय उर्जा होती है।
यही उर्जा हर रात को आकाश में चली जाती हे और हर सुबह ब्रह्मांडीय चेतना लिए वापस शरीर में प्रवेश करती है।
अपनी इस दिव्य उर्जा पर विश्वास रखो और अपनी नियति को स्वीकार कर इस असफलता को भूल जाओ।
नियति को तुम्हारा पायलट बनना मंजूर नहीं था।
अत: असमंजस ओर दुख से निकलकर अपने लिए सही उद्देश्य की तलाश करो।
स्वामी शिवानंद के शब्दों ने जादू-सा असर दिखाया और कलाम ने दिल्ली आकर डीटीडी एंड पी जाकर साक्षात्कार दिया।
साक्षात्कार का नतीजा उनके पक्ष में आया और वे वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक के पद पर नियुक्त हुए।
आगे चलकर वे देश के राष्ट्रपति बने।
कथा का सार यह है कि कभी-कभी इच्छा, संकल्प और प्रयत्न के बावजूद भाग्य साथ नहीं देता है, कितु इससे निराश होने के स्थान पर स्थिर चित्त से विचार कर कार्य दिशा कुछ परिवर्तित करते हुए दोगुने उत्साह से प्रयत्तशील होना चाहिए।
अंतत: सफलता अवश्य मिलती हे।