किसी विद्यालय में संजय नाम का एक अत्यंत मेधावी छात्र पढ़ता था।
वह अचूक निशानेबाज भी था।
अपनी अनेक योग्यताओं के कारण वह शिक्षकों का चहेता छात्र था।
एक बार विद्यालय में वार्षिकोत्सव चल रहा था, जिसमें निशानेबाजी की प्रतियोगिता रखी गई थी।
इसमें नगर के अन्य विद्यालयों के छात्र भी हिस्सा ले रहे थे।
स्कूल के प्राचार्य को विश्वास था कि संजय अपनी अचूक निशानेबाजी से प्रथम पुरस्कार अवश्य जीतेगा।
निशानेबाजी की प्रतियोगिता का लक्ष्य था एक धागे से लटके फल को गिराना।
फल को गिराने के तीन अवसरों में जो सबसे ज्यादा बार उसे गिराने में कामयाब होगा वह नकद पुरस्कार जीतेगा।
कई छात्रों ने निशाना लगाया, किन्तु ज्यादातर छात्रों का निशाना चूक गया तथा कई छात्र इसे ज्यादा से ज्यादा एक बार ही गिरा पाए।
तब एक अन्य विद्यालय के छात्र राहुल ने तीन अवसरों में से दो बार सफल निशाना लगाने में कामयाबी पाई।
जब संजय की बारी आई तो प्राचार्य आशवस्त थे कि संजय के तीनों निशाने कामयाब होंगे। लेकिन संजय का एक निशाना कामयाब रहा और बाकी दो अवसर वह चूक गया।
प्राचार्य ने भारी मन से राहुल को नकद पुरस्कार देकर सम्मानित किया। प्राचार्य ने अकेले में संजय से उसकी पराजय का कारण पूछा। तो वह बोला'सर! राहुल नाम के उस छात्र को मैं जानता हूं।
उसकी विधवा मां मजदूरी करके उसे पढ़ाती है। वह पढ़ाई में होनहार है। पिछले कुछ दिनों से उसकी मां बीमार है, इसलिए वह मजदूरी पर नहीं जा पाई।
उसकी मां को दवाई की जरूरत है और फीस न भरने से राहुल का नाम भी स्कूल से कट जाता।
उसकी नगद सहायता के लिए मैं उससे जानबूझकर पराजित हो गया।
प्राचार्य ने यह सुनकर संजय को गले से लगाते हुए कहा- 'किसी मजबूर की सहायता के लिए तुमने अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया। धन्य हो तुम।'