मानव सेवा बनाती है महान्

कटक में जानकीनाथ बोस नामक एक संपन्न वकील रहते थे।

एक रात वकील साहब सो रहे थे।

उनकी पत्नी व पुत्र सुभाष भी वहीं सोए हुए थे।

थोड़ी देर बाद उनकी पत्नी ने देखा कि सुभाष जमीन पर सोया है।

मां को चिंता हुई कि बेटे को ठंड न लग जाए।

उन्होंने उसे जगाकर पूछा- 'बेटा! जमीन पर क्यों सो रहे हो ?

' सुभाष ने उत्तर दिया- 'मां! हमारे पूर्वज ऋषि-मुनि भी तो जमीन पर ही सोया करते थे।

' मां बोली- 'बेटा! वे महान् थे और उम्र में बड़े भी।

तुम्हारी उम्र जमीन की कठोरता नहीं सह सकेगी।

मां-बेटे की बातचीत से जानकीदास बोस भी जाग गए। उन्होंने भी सुभाष

से पूछा 'जमीन पर सोना किसने सिखाया, बेटा ?

' सुभाष बोला- 'पिताजी! गुरु जी कह रहे थे कि हमारे ऋषि-मुनि महापुरुष थे और वे जमीन पर ही सोते थे।

मैं भी महान् बनूंगा, इसलिए जमीन पर सो रहा हूं।' तब पिता ने समझाया- 'जमीन पर सोने से महान् नहीं बना जा सकता।

कठोर तप-साधना और पीड़ित मानवता की सेवा से व्यक्ति महान् बनता है।

' यही बालक आगे चलकर सुभाषचंद्र बोस के नाम से ख्यात हुआ।

सुभाषचंद्र बोस पढ़ाई पूर्ण करने के पश्चात् एक बहुत बड़े सरकारी अफसर के पद के चयनित हुए थे।

परन्तु उनके मन में तो बस एक ही सपना था कि अपने देश को अंग्रजों की गुलामी से आजाद कराना।

उन्होंने सरकारी अफसर के पद को ठुकरा दिया और अपना संपूर्ण जीवन देश व मानवता की सेवा के लिए समर्पित कर अपने पिता की शिक्षा को साकार

किया और विश्व को यह महत्त्वपूर्ण संदेश दिया कि त्याग और समर्पण से देशहित की शानदार इबारत लिखी जा सकती है।