व्यापारिक जगत् की नामचीन हस्तियों में घनश्यामदास बिडला का नाम बडे सम्मान के साथ लिया जाता था।
बाम्बे में उनक॑ परिवार की सोने-चांदी की दुकान थी।
जब बिड॒ला जी ने मैट्रीक पास कर लिया, तो उनके अभिभावकों ने सोचा कि वे अब अपना खानदानी व्यवसाय ही संभालेंगे, किंतु बिड़ला जी की रुचि कुछ अलग तरह के काम में थी।
उन्होंने देखा कि कोलकाता से जूट बाम्बे भेजा जाता है, जिसे व्यापारी यहां के बाजार में बेचते हैं।
उन्होंने कोलकाता के एक व्यापारी से संपर्क किया और उसे कुछ रुपए भेजे।
व्यापारी ने कुछ रुपयों की एवज में पूरा सामान बिडला जी को भेज दिया।
बिडला जी ने उसे जूट बेचकर एक सप्ताह में पूरे पैसे चुकाने का वादा किया।
एक सप्ताह बीत गया, किंतु व्यापारी के पास पैसा नहीं आया।
वह घबरा गया। उसे बिडला जी की ओर से कुछ धोखाधड़ी की आशंका हुई। उसने बिडला जी को पैसे भेजने का संदेश भेजा।
वास्तविकता यह थी कि जूट के दाम थोडे दिनों में बढ़ने वाले थे, इसलिए उन्होंने माल नहीं बेचा।
तब तक व्यापारी को पैसे भेजने का समय निकल गया।
चूंकि बिड॒ला जी ने माल नहीं बेचा था, इसलिए पैसा उनके पास नहीं था, किंतु व्यापारी का विश्वास बनाए रखने के लिए दूसरे से कर्ज लेकर उन्होंने पैसा भेज दिया।
जब व्यापारी को यह ज्ञात हुआ तो वह बिडलाजी के प्रति सम्मान से भर गया और फिर आजीवन बिड॒ला जी का आग्रह पाते ही सामान भेजता रहा।
एक उक्ति प्रचलित है - 'विश्वासं फलदायकम्।' अर्थात् विश्वास फलता है।
एक बार विश्वास अर्जित कर लेने पर वह सदैव अच्छे परिणाम देता है।