इंग्लैड के प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल न केवल एक बेहतर राजनेता थे, बल्कि एक मानवतावादी देशभक्त भी थे।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उनका यह स्वरूप उस समय और उभरकर सामने आया, जब जर्मनी इंग्लैंड पर बमवर्षा कर रहा था।
युद्ध अपने चरम पर था और सभी ओर त्राहि-त्राहि मची हुई थी।
रात का समय थोड़ा शांति का होता था, क्योंकि तब बमबारी रुक जाती थी।
ऐसे समय चर्चिल अपनी खुली जीप लेकर निकल पड़ते और घायलों से मिलकर उनका हाल चाल जानते और उनका उत्साह बढ़ाते।
जिनके अपने युद्ध में मारे जाते उनके परिजनों को सांत्वना देते।
लोगों के दुख-दर्द सुनते और उनका निवारण करने की पूरी कोशिश करते।
चर्चिल चूंकि प्रधानमंत्री थे इसलिए उनके लिए इस तरह खुली जीप में घूमना बेहद खतरनाक था।
ऐसा करने पर उनके फौजी अफसर उन्हें बहुत रोकते, कितु चर्चिल किसी की नहीं सुनते।
चर्चिल एक बार ऐसे शहर पहुंचे जहां बमबारी से जान-माल की बहुत क्षति हुई थी।
उन्होंने वहां एक महिला को बहुत जोर-जोर से रोते हुए देखा, क्योंकि उसका पूरा परिवार युद्ध में मारा जा चुका था।
जब चर्चिल उसके पास पहुंचे और उसे यह बताया गया कि चर्चिल आए हैं, तो वह महिला शांत हो गई और बोली- 'अब मुझे घबराने की जरूरत नहीं, क्योंकि चर्चिल यहां मौजूद हैं।
चर्चिल की मौजूदगी उस महिला के लिए सबसे बड़ी सांत्वना सिद्ध हुई।
सार यह है कि अपनी दृष्टि में जनहित को सदा सर्वोपरि रखने वाला ही देश का सच्चा नेता होता है और जनता उसके संरक्षण में स्वयं को सुरक्षित महसूस करती है।
चूंकि चर्चिल सदा जनता का ध्यान रखते थे और उनके दुख और दर्द को अपना समझते थे, तो जनता भी उनका सम्मान करती थी।