प्राचीनकाल की बात है एक राज्य के राजा की मृत्यु के पश्चात् उसका मूर्ख पुत्र गददी पर बैठा।
इस प्रकार उस राज्य पर एक मूर्ख राजा का शासन हो गया।
उस मूर्ख राजा को विद्वानों व बुद्धिमानों से नफरत थी।
राजा मूर्ख होने के साथ-साथ क्रूर भी था।
उसने सभी बुद्धिमान मंत्री, सेनापति व सभासदों का निरादर करके राज्य से निकाल दिया और चापलूस व मूर्ख सभासद रख लिए।
उस राजा के राज्य में बुद्धिमान व ज्ञानीजनों का निरादर किया जाने लगा।
जो भी कोई ज्ञानी सिद्ध होता, राजा के सभासद उसे अपमानित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते थे।
इस कारण उस राज्य में अन्य राज्यों के पंडित व ज्ञानी आते ही नहीं थे और वहां किसी प्रकार की बौद्धिक चर्चाएं नहीं होती थी।
अगर कोई ऋषि-मुनि उस राज्य से होकर गुजरता तो उसे अपमानित करके निकाल दिया जाता उस राजा की प्रजा भी राजा के कोप के डर से मूर्ख बनकर रहती।
अगर कोई व्यक्ति विद्वान सिद्ध होता तो उसे नगर से निकाल कर जंगल में भेज दिया जाता।
इस प्रकार उस राज्य के सताए हुए विद्वान लोग जंगल में रहने को विवश हो गए।
एक बार कोई सिद्ध महात्मा उस जंगल में से होकर गुजरे।
राजा के द्वारा सताए हुए विद्वान लोगों ने महात्मा को देखा और उनको प्रणाम किया।
विद्वान लोगों ने महात्मा को अपनी दुखभरी कहानी बताई और महात्मा से इसका समाधान पूछा।
महात्मा अंतर्यामी थे, उन्होंने कुछ क्षण अपनी आंखें बंद की और फिर पुनः आंखें खोलकर बोले- “जिस राज्य में मूर्ख राजा, मूर्ख सभासद और सिर्फ मूर्खो का ही निवास होगा, उस राजा व राज्य का पतन सुनिश्चित है।
आपके पड़ोसी राज्य के राजा को यह पता लग गया है कि आपके राज्य में सिर्फ मूर्ख लोग ही रह गए हैं और मूर्खो को युद्ध में आसानी से हराया जा सकता है।
इसलिए वह जल्द आपके राज्य पर आक्रमण करके इस मूर्ख राजा का अंत कर देगा।
पड़ोसी राज्य का राजा अत्यंत बुद्धिमान है, अत: उसके शासनकाल में आपको उचित सम्मान मिलेगा।
' कथासार यह है कि जहां ज्ञानी, विद्वानों व बुद्धिमानों को उचित सम्मान व आदर नहीं मिलता वहां कभी विकास नहीं हो सकता।
बुद्धि बल सभी प्रकार के बलों में श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि बुद्धि ही जटिल समस्याओं का समाधान करती हे, विद्वान समाज को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
इसलिए किसी भी देश के शासकों को अपने देश के विद्वानों को उचित आदर सम्मान देना चाहिए।