मन के दीप का महत्त्व

गुरू ने बताया मन के दीप का महत्त्व

प्रसंग महाभारत का है।

गुरु द्रोण जब गुरुकुल की कक्षा में कौरव पांडव विद्यार्थियों को पढ़ाने पहुंचे, तो अत्यंत प्रसन्‍न थे।

द्रोण स्वयं परम गह थे, लेकिन उस दिन उन्होंने एक दिव्य ज्ञान का अनभव किया था औए वही प्रकाश उनके समूचे अस्तित्व से अभिव्यक्त हो रहा था।

कक्षा में गुरुदेव ने विद्यार्थियों से यह अनुभव संदेश के साथ बांटा।

उन्होंने बताया कि बीती रात में एक घटना हुई।

अर्जुन बीती संध्या आश्रम मेँ भोजन कर रहा था।

वह थोडा विलंब से भोजन करने बैठा तब तक बाकी विद्यार्थी भोजन कर चुके थे।

संध्या गहरा चुकी थी। अर्जुन एक दीपक की रोशनी में भोजन कर रहा था।

अचानक हवा का एक झोंका आया और दीपक बुझ गया। बावजुद इसके अर्जुन भोजन करता रहा।

अंधकार के बावजूद भी उसे भक्षण करने में कोई अस॒विधा नहीं हुई भोजन करने के पश्चात्‌ अर्जुन उठा और अभ्यास करने लगा।

गुरु ने आगे कहा- मैं यह सब चुपचाप देख रहा था, जब अर्जुन बाण चलाने लगा तो मैं उसके पास पहुंचा।

तब अर्जुन ने बताया कि भोजन क॑ दौगन दीपक बुझने के बावजूद जब मुझे भोजन करने में परेशानी नहीं हुई तो मैंने अंधकार में ही बाण चलाने की दक्षता प्राप्त करने का निश्चय किया।

और देखिए आपकी कृपा से इस अंधकार में भी मेरे बाण लक्ष्य तक पहुंच रहे हैं।

तब गुरु ने अर्जुन को गले लगा लिया।

कक्षा में गुरु ने अर्जुन की प्रशंसा करते हुए कहा- “अर्जुन का यह प्रयास अनुकरणीय है।

यह सच है कि दीप अंधकार को चीरकर आलोक का प्रसार करता है।

लेकिन सच्चा दीपक तो मन का है।

यदि वह प्रज्ज्वलित है तो हम विपरीत परिस्थितियों में भी अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।

अत: सदा मन के प्रकाश हृदय के दीप को आलाकित रखें।

जीवन में सफल होने के लिए चर्म चक्षुओं क॑ साथ-साथ अपने हृदय की आंखों को भी जागरूक रखें।

सच्ची सफलता पाने और सभी से कुछ विशिष्ट करने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है।