शाह अशरु अली अपने समय के विख्यात संत थे।
वे नेतिक मूल्यों में बहुत विश्वास रखते थे और शिष्यों से भी इनका सदैव पालन करने को कहते थे।
एक बार वे सहारनपुर से रेलगाड़ी द्वार लखनऊ के लिए चले।
उनके साथ काफी सामान था, इसलिए सहारनपुर रेलवे स्टेशन पर उन्होंने शिष्यों से कहा कि सामान तुलवा लें।
अगर निश्चित वजन से अधिक हो तो उसका किराया अदा कर दें।
यह बात गाड़ी का गार्ड सुन रहा था।
वह जानता था कि शाह अशरु अली एक विख्यात संत हैं। वह उनकी इज्जत करता था।
गार्ड बोला- “सामान तुलवाने की कोई आवश्यकता नहीं है, में साथ चल रहा हूं।
शाह अशरू अली ने पूछा- “तुम कहां तक जाओगे ?' गार्ड बोला- “मैं बरेली तक जा रहा हूं, किंतु आप सामान की चिंता न करें।
शाह ने कहा- “मगर मुझे तो और आगे जाना है।
गार्ड बोला- "मैं दूसरे गार्ड से कह दूंगा। वह लखनऊ तक आपके साथ जाएगा।
' शाह ने पूछा- 'फिर आगे क्या होगा ? मेरा सफर बहुत लंबा है।
' गार्ड ने जिज्ञासा व्यक्त की- “तो क्या आप लखनऊ से भी आगे जा रहे हैं ?' शाह बोले- 'अभी तो सिर्फ लखनऊ तक ही जा रहा हूं, किंतु जिंदगी का सफर बहुत लंबा है।
वह खुदा के पास जाकर समाप्त होगा।
वहां पर अधिक सामान का किराया न देने के अपराध में मुझे कौन बचाएगा ?
यह सुनकर गार्ड ने क्षमा मांगते हुए शाह के शिष्यों से सामान तुलवाया और अधिक सामान का किराया जमा कराया।
विशिष्ट हस्ती होने के बावजूद किसी प्रकार का अनुचित लाभ न लेकर नियमों का पूर्ण पालन करना जहां एक ओर आमजनों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है, वहीं यह बात उस विशिष्ट व्यक्ति को महान् की श्रेणी में ला खड़ा करता है।
बड़े-बड़े पदों पर विराजमान अफसर व नेताओं को अपने पद का दुरुपयोग करके अनुचित लाभ न तो लेना चाहिए और न ही किसी को अनुचित लाभ पहुंचाना चाहिए।