गंवाई बकरी

दूसरों के कहे पर भरोसा करके गंवाई बकरी

एक पंडित जी यजमानी कर दूसरे गांव से अपने घर लौट रहे थे।

वे बहुत प्रसन्‍न थे, क्‍योंकि दक्षिणा में उन्हें एक बकरी मिली थी।

रास्ते में पड़ने वाला जंगल जब शुरू हुआ तो पंडित जी को चोर, लुगेरों का डर सताने लगा।

इसलिए वे राम-राम जपते हुए रास्ता पार करने लगे। उसी जंगल से चार ठग गुजर रहे थे।

चारों ठगों ने दूर से पंडित जी को बकरी के साथ देख लिया और फिर एक घने पेड़ के पीछे छिपकर बैठे गए।

पंडित जी की दुधारू बकरी को देखते ही वे उसे हथियाने की योजना बनाने लगे।

चारों ने उनकी दुधारू बकरी लूटने की योजना बना ली। दो ठग आगे बढ़कर पंडित जी के पास पहुंचे।

उन्हें प्रणाम कर बोले- “महाराज, यह कुत्ता ऊंची नस्ल का लगता है।

आपको किसने दिया ?” पंडित जी ने चिढ़कर कहा- 'यह बकरी तुम्हें कुत्ता दिखाई दे रही हे ?

यह तो मुझे दक्षिणा में मिली हे।' किंतु दोनों ठग यही कहते रहे- “आपके साथ किसी ने मजाक किया है और बकरी के स्थान पर कुत्ता दे दिया है।

' पंडित जी आगे बढ़े, तो उन्हें दो ठग और मिले और उन्होंने भी बकरी को कुत्ता बताया।

पंडित जी सोचने लगे कि चार लोग असत्य नहीं बोल सकते।

उन्हें विश्वास हो गया कि जो उन्हें दक्षिणा में दी गई है, वह बकरी नहीं, कुत्ता है।

उन्होंने बकरी को जंगल में छोड़ दिया और अपने यजमान को कोसते हुएु घर की ओर चल दिए।

इस प्रकार ठगों ने पंडित जी की बकरी हथिया ली।

कथा का सार यह है कि दूसरों के कहे-सुने पर विश्वास करने से प्राय: बुरे नतीजे भुगतने पड़ते हैं।

इसलिए अपने ऊपर विश्वास रखते हुए और परिस्थितियां पहचानकर स्वविवेक से निर्णय करना चाहिए।