अपमान सहकर भी दिया संयम का परिचय
एक बार गौतम बुद्ध भ्रमण करते हुए किसी गांव में पहुंचे।
इस गांव का प्रधान साधु-संतों, भिश्षुओं को पसन्द नहीं करता था।
अगर कोई साधु-संत या भिक्षु गांव में आ जाता तो वह उनका अपमान करके गांव से उनको निकाल देता था।
जब उसे मालूम हुआ कि बुद्ध अपने शिष्यों के साथ गांव में आ रहे हैं, तो उसने गांव के लोगों को संदेश दिया कि वे अपने घरों के दरवाजे बन्द रखें और बुद्ध को भिक्षा न दें।
गौतम बुद्ध को किसी ने पहले ही ग्राम प्रधान के स्वभाव से परिचित करा दिया था।
गौतम बुद्ध गांव में आकर सबसे पहले ग्राम प्रधान के घर के आगे पहुंचे।
गौतम बुद्ध ने भिक्षा मांगने के लिए आवाज लगाई।
आवाज सुनकर ग्राम प्रधान गुस्से से भरकर घर से बाहर आया और बोला- “तुम यहां से दफा हो जाओ, हमने क्या तुम्हारे लिए अनाज के गोदाम खोल रखे हैं जो चले आए यहां पर मुंह उठा के।
ग्राम प्रधान ने गौतम बुद्ध और उनके शिष्यों को कई भद्दी-भदूदी गालियां भी दी।' गौतम बुद्ध चुपचाप उसकी अपमानजनक बातें सुनते रहे।
जब वह बोल चुका, तब उन्होंने कहा- 'हे ग्राम प्रधान आप मेरी एक बात का जवाब दें। यदि आपके घर आकर कोई खाना खाने की मांग करे और आप उसके लिए खाने की थाली सजा कर लाएं, फिर वो खाने को अस्वीकार कर बिना कुछ खाए पिए चला जाए, तो आप उन खाद्य पदार्थों का क्या करेंगे ?
क्या आप वो खाद्य पदार्थ नष्ट कर रेंगे ?
' ग्राम प्रधान बोला 'मैं उसे नष्ट नहीं करूंगा बल्कि वापिस अपने घर में रख लंंगा।' तब बुद्ध ने कहा- 'उस दशा में आपका सामान आपके पास ही रहा न ?
इसी प्रकार आपक॑ घर आकर हमने भिक्षा मांगी और बदले में आपने हमें अपशब्द कहे।
भिक्षा में दिए इन अपशब्दों को हमने अस्वीकार कर दिया। इसलिए आपके अपशब्द आपके पास ही रह गए।
ग्राम प्रधान को गौतम बुद्ध की बातों का मतलब समझ में आ गया, उसने बुद्ध से माफी मांगी और भविष्य में ऐसा न करने का बचन दिया।
सार यह है कि जब हम किसी को अपशब्द कहते हैं या गाली देते हैं तो हम अपनी ही जुबान और कर्म खराब करते हैं।
जिसको हम अपशब्द कह रहे हैं उसका कुछ नहीं बिगड़ता। अपशब्दों और गाली गलोच से बनते काम बिगड़ जाते हैं, जबकि संयम और मीठी वाणी से बिगड़े हुए काम भी बन जाते हैं।