घटना महात्मा गांधी विज्ञान अन्वेषणशाला, अहमदाबाद की है।
उस समय वहां के प्रमुख विक्रम साराभाई थे।
श्री साराभाई अपने छात्रों को पूर्ण लगन व निष्ठा से पढाते थे। छात्रों को जब भी अध्ययन विषयक कोई बाधा आती, तो साराभाई अपना काम-काज छोड़कर उन्हें समय देते थे।
एक दिन दो छात्र प्रयोगशाला में कोई प्रयोग कर रहे थे। साराभाई उन्हें यथोचित मार्गदर्शन दे चुके थे।
इसके बावजूद उनकी किसी गलती के कारण अचानक भारी विद्युत्त प्रवाह हो गया और एक यंत्र जल गया। दोनों छात्र डर गए। इतनी देर में साराभाई आ गए।
एक छात्र ने दूसरे छात्र से धीरे से कहा- “तुम उन्हें यह घटना बता दो, मुझे तो डर लग रहा हे।' दूसरे ने भी भय के कारण इंकार कर दिया।
साराभाई ने कानाफूसी सुनकर माजरा पूछा तो छात्रों ने सच बता दिया।
तब साराभाई न तो क्रोधित हुए और न ही उनके चेहरे पर कोई तनाव दिखाई दिया। वे सहजता से बोले- 'इतनी-सी बात थी। तुम लोग चिंता मत करो।
छात्र जब अध्ययन व प्रयोग करते हैं, तो ऐसी घटनाएं हो ही जाती हैं। गलतियां नहीं होगी, तो तुम सीखोगे कैसे ?
बस भविष्य में सावधानी रखना।' यह सुनकर छात्र उनके प्रति आदर से भर गए। दरअसल “सीखना” एक निरंतर प्रक्रिया हे, जो प्रयोग व गलतियों से ही परिष्कार और पूर्णता को प्राप्त होता है।
इसलिए सच्चा गुरु अपने शिष्यों को गलती होने पर भी प्रोत्साहन देता है ताकि वे सुधार के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए इच्छित परिणाम पा सकें।