धन-संपत्ति के मोह से लालसा बढ़ती है

सूफो संत उमर बगदाद में रहते थे।

उनकी ख्याति से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में लोग उनके पास आते थे।

वे सभी से प्रेमपूर्वक मिलते और प्रसन्न व संतुष्ट करते।

एक बार एक दरवेष उनसे मिलने आया। जब वह संत उमर के ठिकाने पर पहुंचा, तो उसने देखा संत उमर एक फकीौर होने के बावजूद सोने से निर्मित आसन पर बैठे थे।

उनके कक्ष में चारों ओर जरी के पर्दे लगे हुए थे तथा रेशमी रस्सियों की सजावट थीं।

रस्सियों के निचले हिस्सों में सोने के घुंघरू बंधे हुए थे। कक्ष में चारों ओर सुगंध फैली हुई थी।

संत उमर के कुछ बोलने से पहले ही दरवेष ने कहा- “मैं तो आपकी फकीराना ख्याति सुनकर आपके दर्शन हेतु आया था, किंतु यहां देखता हूं कि आप तो भौतिक संपदा के सागर में हैं।

संत उमर बोले- “यदि तुम्हें एतराज है तो मैं इसी समय यह सब छोड़कर तुम्हारे साथ चलता हूं।

' दरवेष के हामी भरते ही उमर सब छोड़कर उसके साथ हो लिए।

दोनों पैदल कुछ ही मील चले होंगे कि दरबेष ने कहा- “मैं आपके ठिकाने पर अपना कासा (कटोरा) भूल आया हूं।

उसे लेने के लिए वापस जांना होगा।' तब संत उमर बोले- “मैं तुम्हारे कहने पर अपनी संपत्ति को पलभर में ठोकर मारकर आ गया, किंतु तुम मामूली से कटोरे का मोह नहीं छोड़ सके।

जब तक मन में मोह है, सत्य की प्राप्ति कठिन है।' दरवेष को अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने उमर से क्षमा मांगी। सार यह है कि धन संपत्ति से कभी मोह न करें।

जितना अधिक आप धन संपत्ति से मोह करेंगे उतना ही आपका लालच बढ़ेगा और लालच आपको गलत रास्ते पर ले जाएगा।

मोह करना है तो ईश्वर से करें।

ईश्वर से मोह ही सभी दुखों से मुक्ति का मार्ग है।