संत रज्जब सदैव खुदा के स्मरण में लगे रहते थे। न कभी बुरा कहते, न सोचते और न करते।
अपने संपर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सदाचरण की शिक्षा देते और सदा प्रेम की मीठी वाणी बोलते थे।
रज्जब अपने गांव के लोगों की श्रद्धा का केंद्र थे। सभी ग्रामवासी उनकी बातों को बड़े ध्यान से सुनते और अपने व्यवहार में उनका अनुसरण भी करते।
एक बार काम की तलाश में किसी और स्थान से एक युवक जुबेर उस गांव में आया।
उसे काम तो मिल गया, किंतु पैसा आते ही वह शराब और जुए का आदी बन गया।
शराब पीकर वह लोगों को अपशब्द कहता और पूरे गांव में हंगामा मचाता। सभी लोग बहुत परेशान हो गए।
एक दिन अधिक शराब पीने के कारण जुबेर नाली में गिर पड़ा।
कई लोग वहां पर एकत्रित हो गए, किंतु जुबेर की मदद किसी ने नहीं की।
तभी उधर से संत रज्जब निकले। उन्होंने जुबेर को नाली में पड़े देखा तो उसे उठाया और उसका मुंह धोया। संत रज्जब बोले- “नौजवान! जिस मुंह से ऊपरवाले का पवित्र नाम लेना चाहिए, उससे शराब पीकर अपशब्द कहना गुनाह है।
किंतु जुबेर ने यह सब नहीं सुना, क्योंकि वह होश में नहीं था। जब उसे होश आया तो लोगों ने उसे संत रज्जब की सहायता और सलाह के विषय में बताया।
जुबेर के हृदय पर इन बातों का गहरा असर हुआ और उसने संकल्प लिया- “मेरे जिस मुंह को संत ने अपने हाथों से धोया है, उससे कभी बुरे वचन नहीं निकलेंगे।
इसके बाद उसने शराब छोड़ कर सात्विक जीवन की राह पकड़ ली।
सार यह है कि संतों का मार्गदर्शन सदा सुलभ होता है, किंतु उसका पालन व्यक्ति की इच्छाशक्ति पर निर्भर होता है।
अपने जीवन को अच्छाई या बुराई के मार्ग पर ले जाना स्वयं पर निर्भर है।