चतुराई से मिला अपना धन

ब्राह्मण को चतुराई से मिला अपना धन

एक ब्राह्मण को तीर्थ यात्रा पर जाना था।

उसने तीर्थ यात्रा पर जाने से पहले खर्चे के लिए कुछ धन अपने पास रखकर अपना बाकी धन अपने पड़ोसी नगर सेठ के पास जमा करवाया और कहा कि वह तीर्थ यात्रा से लौटने पर वापिस ले लेगा।

कई वर्ष के. पश्चात्‌ ब्राह्मण तीर्थ यात्रा से वापिस लोट।

जब उसे अपने धन को आवश्यकता हुई तो वह नगर सेठ के पास अपना धन वापिस लेने के लिए पहुंचा।

नगर सेठ ने धन वापिस करने से इंकार कर दिया और कहा कि अगर तुमने मेरे पास धन जमा करवाया है तो उसका प्रमाण दिखाओ।

ब्राह्मण राजा के पास पहुंचा, किंतु प्रमाण न होने के कारण राजा भी कुछ करने में असमर्थ था।

ब्राह्मण को एक उपाय सूझा जिससे नगर सेठ बिना कुछ कहे ही उसका धन वापिस कर दे। ब्राह्मण ने वह उपाय राजा को बताया। राजा सहमत हो गया।

अगले दिन राजा नगर भ्रमण के लिए निकला। भ्रमण करते हुए राजा ब्राह्मण के घर के पास पहुंचा। ब्राह्मण अपने घर के बाहर खड़ा था।

राजा ने ब्राह्मण को “गुरुदेव' कहकर संबोधित किया और उन्हें आदर सहित अपने रथ पर बिठा लिया। ब्राह्मण का पड़ोसी नगर सेठ यह सब देख रहा था।

उसने सोचा कि राजा तो ब्राह्मण का बहुत आदर सम्मान करता है।

यदि ब्राह्मण ने राजा को मेरी शिकायत कर दी तो मुझे दंड मिल सकता है।

इससे बचने के लिए यही उचित होगा कि मैं ब्राह्मण का धन लौटा दूं।

अगले दिन नगर सेठ ब्राह्मण के घर पहुंचा और क्षमा मांगते हुए सम्मान सहित उसका धन लौटा दिया।

सार यह है कि जीवन में कभी-कभी ऐसा भी होता है कि आपके पास अपनी सच्चाई का सबूत नहीं होता।

ऐसी परिस्थितियों में काम निकालने के लिए सीधेपन की राह छोड़कर चतुराई का मार्ग अपनाना जरूरी होता है।

घी जब सीधी उंगली से न निकले तो उंगली टेढ़ी करनी ही पड़ती हे।