घायल होने पर भी थी मन में जीत की लगन
घटना सन् 1933 की है।
पंजाब रेजीमेंट और सैपर्स एंड माइनर्स की टीमों के बीच हॉकी का मैच चल रहा था।
पंजाब रेजीमेंट का एक खिलाड़ी अपने प्रभावशाली ढंग से दर्शकों का मन मोह रहा था।
यह देख विपक्षी टीम के एक खिलाड़ी के मन में ईर्ष्या की भावना आ गई।
उसने अवसर पाते ही चतुराई के साथ उस खिलाड़ी को घायल कर दिया।
वह खिलाड़ी घायल होते ही मैदान से बाहर चला गया, किंतु अगले कुछ ही मिनटों में पट्टी बांध कर फिर से मैदान में खेलने के लिए हाजिर हो गया।
आमना-सामना होने पर उसने प्रहार करने वाले खिलाड़ी से कहा- “मैं बदला लिए बिना नहीं रहूंगा, तुम देख लेना।
यह सुनकर उस खिलाड़ी के मन में भय बैठ गया कि वह खिलाड़ी भी अवसर पाते ही उस पर चोट करेगा।
अत; वह संभलकर खेलने लगा।
घायल खिलाडी के चेहरे पर एक दृढ़ निश्चय झलक रहा था।
उसके खेल में और अधिक पैनापन आ गया।
उसने विपक्षी टीम पर एक के बाद एक छह गोल कर दिए और अपनी टीम को जीता दिया।
खेल समाप्त होने पर वह प्रहार करने वाले खिलाड़ी के पास जाकर बोला- “तुमने मुझ पर वार करके मुझे बदला लेने के लिए मजबूर कर दिया था।
इसी भावना से मैंने छह गोल किए और अपना बदला पूरा किया।
यह घायल खिलाड़ी थे मेजर ध्यानचंद जो आगे चलकर हॉकी के जादूगर की उपाधि से अलंकृत हुए।
अत: व्यक्ति या प्रकृति प्रदत्त प्रतिकूलताओं से निराश न होते हुए उन्हें ही आगे बढ़ने का जरिया बना लिया जाए तो बड़ी उपलब्धियां हासिल हो सकती हैं।