प्रलोभनों के आगे नहीं झुका मराठा सेनापति
इब्राहिम गार्दी मराठा तोपखाने का सेनापति था।
एक बार युद्धभूमि में उनके शिविर में एक सैनिक आया ओर उन्हें सलाम कर बोला- “हुजूर! में बादशाह अहमदशाह अब्दाली का दूत हूं।
उनकी ओर से आपके लिए एक पैगाम लाया हूं।
यदि आप युद्ध में उनका साथ देंगे तो आप न सिर्फ अपने मजहब की खिदमत करेंगे बल्कि ऊंचे ओहदे और अतुलित धन-संपति से नवाजे जाएंगे।
फिलहाल उनकी तरफ से यह तोहफा कबूल करें।
यह कहते हुए अशर्फियों से भरा एक थेला उसने गार्दी के पैरों के पास रख दिया।
गार्दी ने यह सुनते ही क्रोध से लाल-पीला होकर कहा- “यदि तुम दूत न होते, तो तुम्हारा सिर यहीं कलम कर देता।
तुम इस मुल्क के ही नहीं, दीन के भी दुश्मन हो।
मुझे एक विदेशी लुटेरे अब्दाली का साथ देने के लिए तोहफा दे रहे हो, जिसने हजारों निर्दोष लोगों का निर्दयता से कत्ल करवा दिया।
तुम इसे मजहब की खिदमत कहते हो।
अपने वतन के साथ गद्दारी को मैं मजहब और दीन के साथ गददारी मानता हूं।
' गार्दी म्यान से तलवार निकालते हुए बोले- 'उठा यह अशर्फियां ओर मेरी तलवार तुझ पर बिजली बनकर गिरे, इससे पहले ही यहां से चला जा।
' दूत भयभीत हो अशर्फियां उठाकर भाग गया। इब्राहिम गार्दी सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने अपनी वतनपरस्ती से कभी समझौता नहीं किया।
उनके नेतृत्व में मराठा तोपखाने ने अहमदशाह अब्दाली की सेना पर कहर बरपा दिया।
वस्तुत: देशभक्ति का ऐसा जज्बा यदि देश के प्रत्येक नागरिक में हो, तो देश की सुरक्षा व विकास सर्वथा सुनिश्चित हो जाते हैं।