बहुत समय पहले, एक जंगल में बहुत सारे सीधे तने हुए, सुंदर-सुंदर पेड़ थे। उसी जंगल में एक पेड़ अलग-अलग सा था। उसका तना झुका हुआ और टेढ़ा-मेढ़ा था। उसकी डालियों भी टेढ़ी-मेढ़ी थी।
अपनी इस हालत की बजह से वह पेड़ काफी उदास रहता था। जब भी वह दूसरे पेड़ों की ओर देखता, तो आह भरने, काश, मैं भी बाकी पेड़ों की तरह सुंदर होता।
भगवान ने मेरे साथ बड़ा अन्याय किया है।
एक दिन, एक लकड़हारा उस जंगल में आए। उसकी निगाह उस टेढ़े-मेढ़े पेड़ पर पड़ी। वह तिरस्कार भरे स्वर में बोला, ये टेढ़ा-मेढ़ा पेड़ मेरे किस काम का और तब उसने बाकी सारे सीधे और सुंदर पेड़ों को काट डाला।
तब उस टेढ़े -मेढ़े पेड़ को समझ में आया कि भगवान ने उसे टेढ़ा-मेढ़ा और कुरूप बनाकर उसके साथ कितना अच्छा किया क्योंकि उसके इसी आकर की वजह से ही उसकी जान बच पाई।