पगडी-प्रतियोगिता

एक दिन सभा में बेठे बादशाह अकबर ने बीरबल की पगड़ी बाँधने की कला की प्रशंसा की।

उसी सभा में मुल्ला दोप्याजा बादशाह का एक मुँहलगा सरदार था।

वह बीरबल की प्रशंसा बादशाह से न सुन सका।

मन-ही-मन अपने अप्रमान से चिढ़कर मुल्ला ने कहा, 'इसमें कान-सी बड़ी बुद्धिमानी है, जिसकी इतनी बड़ाई हो रही है ?

इससे कहीं अच्छी पगड़ी तो मैं बाँध सकता हूँ।'

बादशाह ने प्रसन्‍न होकर दूसरे दिन मुल्ला को अपनी कला प्रदर्शित करने को कहा।

उस दिन के आवश्यक कार्यों को निपटाकर बादशाह महल में चले गए।

सुल्ला मन-ही-मन आनंदित हो रहे थे। दूसरे दिन बड़े सुबह-सुबह वह समय से पहले ही दरबार में जा पधारे।

जो दरबारी आते, वे देखते ही मुल्ला की तारीफ करते।

अंत में बीरबल के साथ बादशाह भी आए। मुल्ला को पगड़ी देखकर बादशाह को बहुत प्रसन्नता हुई।

मुल्ला को पगड़ी की तारीफ करते हुए बादशाह बोले, 'यह तो बीरबल की पगड़ी से सचमुच कहीं अच्छी बँधी है।'

यह सुनकर बीरबल बोले, 'जहाँपनाह! यह मुल्ला साहब की करामात नहीं हे बल्कि इनकी पत्नी की है।

वास्तव. में तारीफ के योग्य इनकी पत्ली है, न कि मुल्ला।

उसी के सहयोग से आज यह इस सम्मान को प्राप्त हुए। यदि मेरी बात सत्य नहीं है तो मुल्ला साहब अपनी पगडी खोल दें ओर हुजूर के सामने दुबारा बाँधें।

यदि ऐसी ही सुंदर पगड़ी दुबारा बाँध लेंगे तो ठीक है अन्यथा फिर यही समझा जाएगा कि पगड़ी इन्होंने अपनी पत्नी से बँधवाई है।

बादशाह ने बीरबल की बात को मान लिया और मुल्ला साहब को पगड़ी उतारकर दुबारा बाँधने का हुक्म दिया।

मुल्ला ने पगडी उतार ली, कितु वे बिना शीशे के पगड़ी नहीं बाँध सकते थे।

उन्हें इधर-उधर झाँकते हुए देखकर बीरबल ने चुटकी ली और कहा, 'मुल्ला साहब!

क्या चाहिए ?' मुल्ला कुछ न बोले और पगडी बाँधना आरंभ किया।

शीशा न देखने के कारण उन्होंने जो पगडी बाँधी, उससे सब दरबारी और बादशाह हँस पडे। मुल्ला बेचारे बहुत लज्जित हुए।

बादशाह ने मन-ही-मन बीरबल की प्रशंसा की।

प्रकट में बादशाह बोले, “वाह मुल्ला साहब, आपने तो कमाल कर दिया, जो काम आप स्वयं नहीं कर सकते, वह अपनी पत्ली से कठरवाते हैं।