एक बार अकबर ने सोचा - में इतनी बार बीरबल को फँसाने की कोशिश कर चुका हूँ पर वह हर बार बाजी मार लेता है।
इस बार में ऐसी चाल चलूँगा कि सारा हिसाब-किताब बराबर हो जाएगा।
दूसरे दिन बादशाह अकबर ने बीरबल को किसी काम से बाहर भेजा और दरबारियों से कहा, 'इस टोकरी में अंडे भरे हुए हैं।
आप सब लोग एक-एक अंडा उठाएँ और अपने-अपने कपड़ों में छिपा लें।
जब बीरबल दरबार में आ आएँगे तो में आप लोगों से होज में गोता लगाने को कहँगा।
जब आप लोग होज से बाहर आए तो ऐसा दिखावा करें कि अंडा आपको होज में मिला था।'
कुछ देर बाद बीरबल लोटकर आए। उन्होंने बातावरण को गंभीर देखा। वह समझ गए कि कुछ नई बात होने वाली है।
तभी बादशाह अकबर ने कहा, 'बीरबल, हमने कल रात एक अजीब सपना देखा।
सपने में हमें अपने दरबारियों की योग्यता जाँचने का नया तरीका सूझा है।'
इसके बाद अकबर ने वहाँ उपस्थित दरबारियों से कहा, 'बगीचे में जो हौज है, उसमें आप एक- एक करके गोता लगाएँगे।
जी खरे आदमी हैं, उन्हें वहाँ एक-एक अंडा मिलेगा।
यदि कोई आदमी अंडा लिए बिना बाहर आया तो समझा जाएगा कि वह भरोसे का आदमी नहीं है।'
अब दरबारियों की समझ में आया कि जहाँपनाह बीरबल के पर कतरना चाहते हैं। उन्होंने सोचा- आज बड़ा मजा आएगा।
बीरबल हर बार हमें बेवकूफ साबित कर देता है। आज उसकी बारी आई है बेवकूफ बनने की।
बीरबल की तेज निगाहों ने दरबारियों को कानाफूसी करते हुए देख लिया।
उनको समझ में आ रहा था कि बादशाह उन्हें मूर्ख बनाना चाहते हें।
तभी बादशाह ने आदेश दिया और दरबारी एक-एक करके होज में कूदने लगे।
जो भी दरबारी बाहर आता, वह अपने हाथ में एक अंडा लेकर आता।
सबसे अंत में बीरबल की बारी आई। बीरबल ने सोचा कि हौज में अंडों की कोई -टोकरी रखी हे, ये सभी लोग उसी में से अंडा लेकर आ रहे हैं।
बादशाह ने आदेश दिया, 'कूद जाओ बीरबल। देर न करो। देखें, तुम भी अंडा लाते हो या नहीं।'
बीरबल ने होज में गोता लगाया। उन्होंने देखा कि हौज में तो अंडों को कोई टोकरी नहीं है। जरूर जहाँपनाह ने उनके साथ ठिठोली की है। किंतु वह भी किसी से कम नहीं थे।
बीरबल हौज से बाहर आए। उन्होंने एक झटका दिया और अपने शरीर से पानी के छींटे उड़ाएं और फिर ' कुकडूँ-कूँ, कुकडू-कूँ' करने लगे।
बादशाह अकबर ने पूछा, 'यह क्या कर रहे हो बीरबल ?
तुम्हारा अंडा कहाँ है ? यह मुर्गे की तरह बाँग क्यों दे रहे हो ?'
बीरबल ने बिना रुके उत्तर दिया, 'जहाँपनाह, आप तो जानते ही हैं कि मुर्गा अंडा नहीं देता। अंडा तो मुर्गियाँ ही देती हैं।
आपके पास इतनी मुर्गियों का झुंड है, किंतु मुर्गा तो अकंला मैं ही हूँ।'
सारे दरबारी इतना झेंपे कि वे अपनी आँखें ऊपर न उठा सके।