राज्य में कपड़ा बुनने के लिए रूई बाहर से मँगाई जाती थी।
रूई पर्याप्त मात्रा में मँगाई जा रही थी, फिर भी जुलाहों के सामने रूई की समस्या खड़ी हो गई।
रूई की चोर बाजारी कौन कर रहा है, इस बात का पता ही नहीं चल रहा था।
चेतावनी दी गई। फिर भी रूई की चोर-बाजारी कम नहीं हुई। माँग ज्यादा थी, पूर्ति कम थी।
इस कारण और ज्यादा रूई मँगवाई जाने लगी। परंतु अब भी कमी ही रही।
बादशाह ने कई बार आयात बढ़ाया, फिर भी रूई का अभाव ही रहा।
बादशाह को क्रोध आ गया और उन्होंने रूई बाहर से मँगवानी बंद कर दी।
देश में जुलाहे बेकार हो गए। इस पर वे बीरबल के पास फरियाद लेकर गए। बीरबल ने उनकी परेशानी सुनी और उन्हें आश्वासन दिया।
उन्होंने बादशाह से मिलकर रूई का आयात खुलवा दिया। रूई-चोरों को पकड़ने का दायित्व अपने ऊपर ले लिया।
बीरबल जानते थे कि रूई-चोर वे व्यापारी हैं, जो कि जुलाहों को रूई सप्लाई करते हैं।
उन्हीं बिचौलियों के कारण कमी पड़ती है। वे ही रूई अधिक दामों में बेचते हैं।
बीरबल ने उन व्यापारियों को इकट्ठा किया और कहना शुरू किया, 'आप लोग ही रूई के व्यापारी हैं।
आप ही के माध्यम से रूई देश में आती है। रूई की मात्रा खूब बढ़ाकर देख ली गई है, फिर भी कमी पड़ी और जितनी रूई मँगवाई गई, वह कातने वालों तक नहीं पहुंची।
कातने वाले जुलाहों तक उतना सूत न भेज सके। अभाव पैदा करने वाले आप ही लोग हैं।
आप लोगों में ही कोई चोर है और मैं जानता हूँ कि कौन है।
ऐसे व्यक्ति की पगडी स्वयं ही बता देगी कि रूई-चोर कौन है ?'
उन लोगों के बीच मारवाड़ी सेठ रूई की जमाखोरी, मुनाफाखोरी और ब्लैक करता था, उसका हाथ तुरंत पगड़ी पर चला गया कि कहीं उसकी पगड़ी पर रूई तो नहीं लगी है, जिसे बीरबल ने देख लिया हो।
बस फिर क्या था, चोर पकड़ा गया।
उसी के गोदाम से रूई की गाँठे बरामद की गईं। इसके बाद रूई की चोरी राज्य में नहीं हुई।
बीरबल की सूझ-बूझ से रूई-चोर पकड़ा गया। राज्य में फिर से कपड़े का उत्पादन होने लगा।