सभी दरबारी यथास्थल बैठे हुए थे। वहीं बीरबल भी मौजूद थे।
बादशाह ने एक दोहा पढ़ा
काह न अबला करि सके, काह न सिंधु समाय।
काह न पावक में जरै, काह काल नहिं खाय।
बादशाह का दोहा सुनकर सभी लोग चुप रह गए। वे एक-दूसरे का मुँह देखते रहे।
बादशाह ने बारी-बारी से सबकी ओर देखा। जब उनकी दृष्टि बीरबल से मिली तो बीरबल बोले, 'जहाँपनाह
सुनिए
पुत्र न अबला करि सके, जल नहिं सिंधु समाय।
धर्म न पावक जरै, नाम काल नहिं खाय। बीरबल का उत्तर सुनकर बादशाह बड़े खुश हुए।