राजनीतिज्ञ गीदड़

एक गीदड़ की कहानी - राजनीति गीदड़ की मनमोहक कहानी

उत्तमं प्रणिपातेन शूरं भेदेन योजयेत् ।
नीचमल्पप्रदानेन समशक्तिं पराक्रमैः॥

उत्कृष्ट शत्रु को विनय से, बहादुर को भेद से, नीच को दान द्वारा और समशक्ति को पराक्रम से वश में लाना चाहिए।

एक जंगल में महाचतुरक नाम का गीदड़ रहता था।

उसकी दृष्टि में एक दिन अपनी मौत मरा हुआ हाथी पड़ गया।

गीदड़ ने उसकी खाल में दाँत गड़ाने की बहुत कोशिश की, लेकिन कहीं से भी उसकी खाल उधेड़ने में उसे सफलता नहीं मिली।

उसी समय वहाँ एक शेर आया। शेर को आता देखकर वह साष्टांग प्रणाम करने के बाद हाथ जोड़कर बोला-स्वामी! मैं आपका दास हूँ।

आपके लिए ही इस मृत हाथी की रखवाली कर रहा हूँ।

आप अब इसका यथेष्ट भोजन कीजिए।

शेर ने कहा-गीदड़! मैं किसी और के हाथों मरे जीव का भोजन नहीं करता।

भूखे रहकर भी मैं अपने इस धर्म का पालन करता हूँ।

अतः तू ही इसका आस्वादन कर। मैंने तुझे भेंट में दिया।

शेर के जाने के बाद वहाँ एक बाघ आया।

गीदड़ ने सोचा, एक मुसीबत को तो हाथ जोड़कर टाला था, इसे कैसे टालूँ ?

इसके साथ भेदनीति का ही प्रयोग करना चाहिए।

जहाँ साम-दाम की नीति न चले वहाँ भेद-नीति ही काम करती है।

भेद-नीति ही ऐसी प्रबल है कि मोतियों को भी माला में बींघ देती है।

यह सोचकर वह बाघ के सामने ऊँची गर्दन करके गया और बोला : मामा! इस हाथी पर दाँत न गड़ाना। इसे शेर ने मारा है।

अभी नदी पर नहाने गया है और मुझे रखवाली के लिए छोड़ गया है।

यह भी कह गया है कि यदि कोई बाघ आए तो उसे बता दूं, जिससे वह सारा जंगल बाघों से खाली कर दे।

गीदड़ की बात सुनकर बाघ ने कहा-मित्र! मेरी जीवन-रक्षा कर, प्राणों की भिक्षा दे। शेर से मेरे आने की चर्चा न करना-यह कहकर वह बाघ वहाँ से भाग गया।

बाघ के जाने के बाद वहाँ एक चीता आया। गीदड़ ने सोचा, चीते के दाँत तीखे होते हैं, इससे हाथी की खाल उधड़वा लेता हूँ।

वह उसके पास जाकर बोला-भगिनीसुत! क्या बात है, बहुत दिनों में दिखाई दिए हो।

कुछ भूख से सताए मालूम होते हो। आओ मेरा आतिथ्य स्वीकार करो। यह हाथी शेर ने मारा है।

मैं इसका रखवाला हूँ। तब तक शेर आए, इसका माँस खाकर जल्दी से भाग जाओ। उसके आने की खबर दूर से ही दे दूंगा।

गीदड़ थोड़ी दूर पर खड़ा हो गया और चीता हाथी की खाल उधेड़ने लग गया।

जैसे ही चीते ने एक-दो जगहों से खाल उधेड़ी, गीदड़ चिल्ला पड़ा-शेर आ रहा है, भाग जा!-चीता यह सुनकर भाग खड़ा हुआ।

उसके जाने के बाद गीदड़ ने उधड़ी हुई जगहों से माँस खाना शुरू कर दिया।

लेकिन अभी एक-दो ग्रास ही खाए थे कि एक गीदड़ आ गया। वह उसका समशक्ति ही था, उस पर टूट पड़ा और उसे दूर तक भाग आया।

इसके बाद बहुत दिनों तक वह उस हाथी का माँस खाता रहा।

यह कहानी सुनकर बन्दर ने कहा-तभी तुझे भी कहता हूँ कि स्वजातीय से युद्ध करके अभी निपट ले, नहीं तो उसकी जड़ जग जाएगी।

वही तुझे नष्ट कर देगा। स्वाजातियों का यही दोष है कि वही विरोध करते हैं, जैसे कुत्ते ने किया था।

मगर ने कहा-कैसे ? बन्दर ने तब कुत्ते की कहानी सुनाई :