एकबुद्धि की कथा

दो मछलियों और मेंढक की कहानी

एक व्यवहार बुद्धि सो अव्यावहारिक बुद्धियों से अच्छी है।

एक तालाब में दो मछलियाँ रहती थीं।

एक थी शतबुद्धि (सौ बुद्धियोंवाली) दूसरी थी सहस्रबुद्धि (हजार बुद्धिवाली)।

उस तालाब में एक मेढक भी रहता था। उसका नाम था एकबुद्धि।

उसके पास एक ही बुद्धि थी। इसलिए उसे बुद्धि पर अभिमान नहीं था।

शतबुद्धि और सहस्रबुद्धि को अपनी चतुराई पर बड़ा अभिमान था।

एक दिन संध्या समय तीनों तालाब के किनारे बातचीत कर रहे थे।

उसी समय उन्होंने देखा कि कुछ मछियारे हाथों में जाल लेकर वहाँ आए।

उनके जाल में बहुत-सी मछलियाँ फँसकर तड़प रही थीं।

तालाब के किनारे आकर मछियारे आपस में बात करने लगे।

एक ने कहा :

-इस तालाब में खूब मछलियाँ हैं। पानी भी कम है। कल हम यहाँ में आकर मछलियाँ पकड़ेंगे।

सबने उसकी बात का समर्थन किया। कल सुबह यहाँ आने का निश्चय करके मछियारे चले गए।

उनके जाने के बाद सब मछलियों ने सभा की। सभी चिन्तित थे कि क्या किया जाए।

सबकी चिन्ता का उपहास करते हुए सहस्रबुद्धि ने कहा-डरो मत, दुनिया में सभी दुर्जनों के मन की बात पूरी

होने लगे तो संसार में किसी का रहना कठिन हो जाए।

साँपों और दुष्टों के अभिप्राय कभी पूरे नहीं होते, इसलिए संसार बना हुआ है।

किसी के कथन मात्र से डरना कापुरुषों का काम है।

प्रथम तो वे यहाँ आएँगे ही नहीं, यदि आ भी गए तो मैं अपनी बुद्धि के प्रभाव से सबकी रक्षा कर लूँगी।

शतबुद्धि ने भी उसका समर्थन करते हुए कहा-बुद्धिमान् के लिए संसार में सब कुछ सम्भव है।

जहाँ वायु और प्रकाश की भी गति नहीं होती, वहाँ बुद्धिमानों की बुद्धि पहुँच जाती है।

किसी के कथनमात्र से हम अपने पूर्वजों की भूमि को नहीं छोड़ सकते।

अपनी जन्मभूमि से जो सुख होता है वह स्वर्ग में भी नहीं होता।

भगवान् ने हमें बुद्धि दी है, भय से भागने के लिए नहीं, बल्कि भय का युक्तिपूर्वक सामना करने के लिए।

तालाब की मछलियों को तो शतबुद्धि और सहस्रबुद्धि के आश्वासन पर भरोसा हो गया, लेकिन एकबुद्धि मेढक ने कहा-मित्रों!

मेरे पास तो एक ही बुद्धि है, वह मुझे यहाँ से भाग जाने की सलाह देती है।

इसीलिए मैं सुबह होने से पहले ही इस जलाशय को छोड़कर अपनी पत्नी के साथ दूसरे जलाशय में चला जाऊँगा।

यह कहकर वह मेढक, मेढकी को लेकर तालाब से चला गया।

दूसरे दिन अपने वचनानुसार वे मछियारे वहाँ आए। उन्होंने तालाब में जाल बिछा दिया।

तालाब की सभी मछलियाँ जाल में फँस गईं।

शतबुद्धि और सहस्रबुद्धि ने बचाव के लिए बहुत--से पैंतरे बदले, किन्तु मछियारे भी अनाड़ी न थे।

उन्होंने चुन-चुनकर सब मछलियों को जाल में बाँध लिया।

सबने तड़प-तड़प कर प्राण दिए।

संध्या समय मछियारों ने मछलियों से भरे जाल को कन्धे पर उठा लिया।

शतबुद्धि और सहस्रबुद्धि बहुत भारी मछलियाँ थीं। इसीलिए उन्होंने शतबुद्धि को कन्धे पर और सहस्रबुद्धि को हाथों पर लटका लिया था।

उनकी दुरवस्था देखकर एकबुद्धि मेढक ने अपनी मेढकी से कहा :

-देख प्रिये! मैं कितना दूरदर्शी हूँ।

जिस समय शतबुद्धि कन्धों पर और सहस्रबुद्धि हाथों में लटकी जा रही है, उस समय मैं एकबुद्धि इस छोटे-से जलाशय में निर्मल जल में सानन्द विहार कर रहा हूँ।

इसलिए मैं कहता हूँ कि विद्या से बुद्धि का स्थान ऊँचा है, और बुद्धि में भी सहस्रबुद्धि की अपेक्षा एकबुद्धि होना अधिक व्यावहारिक है।

यह कहानी पूरी होने के बाद चक्रधर ने पूछा :

तो क्या मित्र की सलाह सदा माननी चाहिए ? स्वर्ण-सिद्धि ने उत्तर दिया :

मित्र के वचन का उल्लंघन ठीक नहीं है।

जो विद्या-बुद्धि के अहंकार या लोभवश मित्र की बात को अनसुनी कर देते हैं वे अपने मित्र गीदड़ की बात न मानने वाले गधे की तरह कष्ट उठाते हैं।

चक्रधर ने पूछा-वह कैसे? स्वर्ण-सिद्धि ने तब यह कथा सुनाई