जब से खोजा काजी बना उसकी अदालत में इंसाफ की गुहार लगाने वालों का तांता लगा रहने लगा।
जिन गरीब लोगों के मुकदमे किसी और काजी के इलाके में आते थे, वे भी यह सोचने लगे कि काश उनका मुकदमा भी खोजा की अदालत में आ जाता।
कई लोग यह दुआ करने लगे कि एक बार और बादशाह को सदबुद्धि आ जाए।
खोजा को काजी बनाकर बादशाह ने जो समझदारी और जनता की भलाई का काम किया है,उसी तरह यदि वह यह एलान कर दे कि मुल्क के तमाम मुकदमे खोजा की अदालत में ही होंगे तो उन्हें भी इंसाफ का मुंह देखना नसीब हो जाए।
देखते ही देखते खोजा के इंसाफ डंका बजने लगा। डंके की यह आवाज बादशाह के कानों तक भी पहुंची।
बादशाह ने एक दिन खोजा को अपने दरबार में तलब कर लिया।
दरअसल बादशाह अपने और तमाम काजियों और अधिकारीयों के सामने खोजा से यह जानना चाहता था कि वह ऐसा इंसाफ कैसे करता है जिसे सुनने के बाद जिसके पक्ष में इंसाफ सुनाया गया, वह तो खुश होता ही है, जिसके खिलाफ फैसला सुनाया गया, वह भी अपनी फरियाद लेकर किसी और अदालत में पेश नहीं होता।
बादशाह चाहता था कि खोजा के इंसाफ का तरीका अन्य काजी भी अपनाएं जिससे आवाम में बादशाह की और भी वाह-वाह हो।
खोजा के पहुंचने पर बादशाह बोला, खोजा! हमने सुना है की तुम्हारे पास काम का बहुत अधिक बोझ है।
हम तुम्हारा बोझ कुछ काम करना चाहते हैं।
तुम इन दूसरे काजियों को अपना इंसाफ करने का तरीका बताओ ताकि ये भी उस पर अमल कर सके।
इससे एक तरफ तुम्हारा काम का बोझ कुछ काम होगा, दूसरी तरफ प्रजा जल्दी से जल्दी और भी खुशहाल हो जाएगी।
बादशाह की नेक बातें सुनकर खोजा बोला, जहाँपनाह!
जहाँ तक मेरे इंसाफ करने के तरीके की बात है, मैं दूध का दूध और पानी का पानी करता हूँ।
इंसाफ की गद्दी पर बैठने के बाद मैं ये जानना गवारा नहीं करता कि कौन अमीर है और कौन गरीब।
कौन मेरा है और कौन पराया। किसकी जेब में क्या है और किसकी पहुंच कहाँ तक है।
अब रहा सवाल प्रजा को खुशहाल करने का तो उसका तरीका तो बहुत आसान है।
बस जरूरत है नेक नीयत की।
अगर आप वह तमाम अनाज और पैसा जिसे आपके हुक्म से प्रजा से वसूल किया गया है, जिसमें से कुछ आपके खजाने तक पहुंचा है
और कुछ आपके मुलाजिमों के तहखाने में जमा है, जिनसे वसूला गया है, उन मजलूमों को लौटा दें तो आपकी रियासत मेरे जैसे काजियों के इंसाफ के बिना ही खुशहाल हो जाएगी।