बादशाह खोजा को काजी बनाने जा रहे है, यह खबर सुनते ही एक कंजूस सेठ ने भी खोजा को खाने पर बुलाया।
हालांकि सेठ जानता था कि खोजा अमीरों का नहीं, गरीबों का हित चिंतक है, पर उसका ख्याल था कि हो सकता है खोजा भी कोई ओहदा पाने के बाद गरीबों से मुंह मोड़ ले और अमीरों की हाँ में हाँ मिलाने लग जाए।
पर कहते हैं न आदत अच्छी, बड़ी मुश्किल से छूटती है। यही सेठ के साथ भी हुआ।
जब खोजा सेठ के घर खाना खाने आया तो सेठ ने अपना कटोरा तो दूध से ऊपर तक भर लिया और खोजा को आधे कटोरे से भी कम दूध परोसते हुए कहा, लो भाई दूध पी लो आज मेरा खानसामा नदारद है इसलिए और कुछ तो बन नहीं सकता कटोरा-भर दूध हाजिर है।
खोजा बोला, सेठ जी। जरा एक आरी तो दीजिए।
आरी का क्या करोगे, खोजा भाई ? सेठ ने हैरानी से पूछा।
खोजा बोला, बात यह है कि इस कटोरे का ऊपरी हिस्सा फालतू है, बेहतर यही होगा कि पहले मैं कटोरे के इस ऊपरी हिस्से को आरी से काट दूँ। खोजा की बात सुन सेठ जोर-जोर हंसने लगा।
वह हँसता रहा हँसता रहा। जब उसने देखा कि उसकी हंसी में खोजा शामिल हो ही नहीं रहा तो अचानक चुप हो गया। उसे महसूस हुआ कि इस समय उसे यूँ राक्षसों की तरह नहीं हंसना चाहिए था।
अब भूल सुधार का एक ही उपाय है कि कोई हल्की-फुल्की बात शुरू करके माहौल को बदला जाए।
अपनी हंसी के दौरान सेठ को राक्षस का विषय बनाते हुए खोजा से पूछा, खोजा! तुम तो हजारों औंधे-सीधे लोगों से मिलते हो।
अब काजी बन जाने के बाद और भी ज्यादा लोगों से मिलोगे। क्या तुम कभी राक्षस से भी मिले हो ? मैं जीवन में कम से कम एक बार किसी राक्षस से मिलने की तमन्ना रखता हूँ। क्या तुम इसमें मेरी कोई मदद कर सकते हो ?
खोजा बोला, जरूर! आप तो रोजाना एक राक्षस को देख सकते हैं। इसके लिए आपको किसी की मदद की जरूरत भी नहीं है।
आपको सिर्फ इतना करना होगा कि रोजाना सुबह उठते ही आइने में अपनी शक्ल देख लिया करें।
खोजा की बात सुनकर सेठ ने मन ही मन सोचा, यह शख्य जो मेरे बारे में इतनी खराब राय रखता है, आड़े वक्त में मेरा लिहाज कतई नहीं करेगा।
खोजा के जाने के बाद सेठ ने इस समझदारी के लिए खुद ही अपनी पीठ थपथपाई कि अच्छा हुआ जो मैंने आधा दूध ही खर्च किया, कहीं मुर्ग मुसल्लम बनवा लिया होता तो मैं अच्छे-खासे घाटे में रहता।